बहते से रास्तों पर, मंजिल को ढॣंढता हूं मैं...
आए न हाथ जो, सपने वही ढॣंढता हूं मैं...
आरजुओं के गुल ढूंढता हूं मैं,
बहती सी इस जमीं पर,
शहर-शहर मन्नतों के घूमता हूं मैं....
बस इक धूल सा उड़ता हूं मै,
इन्ही फिजाओं में कहीं,
बेवश दूर राहों पे भटकता हूं मैं.....
इक वो ही निशान ढूंढता हूं मैं,
बह रही जो रास्तों पर,
ख्वाहिशों के मुकाम ढॣंढता हूं मैं...
बहते से रास्तों पर, मंजिल को ढॣंढता हूं मैं...
आए न हाथ जो, सपने वही ढॣंढता हूं मैं...