रात भर बरसती रही, वो भीगी सी रात!
ना कोई, शाख था बचा,
चमन में, न कोई बाग था बचा,
टपकती थी बूँदें,
हर तरफ फूल पर, बिखरी थी बूँदें,
भीगे थे सब, पात-पात !
रात भर बरसती रही, वो भीगी सी रात!
भीगी हुई, वो टहनियाँ,
कर गई, हाले-दिल सब बयाँ,
तन पर लकीरें,
सुबह की, मोम सी पिघली तस्वीरें,
पिघली सी थी, हर बात!
रात भर बरसती रही, वो भीगी सी रात!
हर पल, टूटा था बादल,
छूटा था जैसे, हाथों से आँचल,
उजाड़ था मन,
दहाड़ कर, रात भर बरसा था घन,
बूँदों संग, छूटा था साथ !
रात भर बरसती रही, वो भीगी सी रात!
कोई, घटाओं से कह दे,
मन में दबी, सदाओं से कह दे,
भीगती है क्यूँ,
संग बूँद के, इतना मचलती है क्यूँ?
जज्बातों की, है ये बात!
रात भर बरसती रही, वो भीगी सी रात!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
ना कोई, शाख था बचा,
चमन में, न कोई बाग था बचा,
टपकती थी बूँदें,
हर तरफ फूल पर, बिखरी थी बूँदें,
भीगे थे सब, पात-पात !
रात भर बरसती रही, वो भीगी सी रात!
भीगी हुई, वो टहनियाँ,
कर गई, हाले-दिल सब बयाँ,
तन पर लकीरें,
सुबह की, मोम सी पिघली तस्वीरें,
पिघली सी थी, हर बात!
रात भर बरसती रही, वो भीगी सी रात!
हर पल, टूटा था बादल,
छूटा था जैसे, हाथों से आँचल,
उजाड़ था मन,
दहाड़ कर, रात भर बरसा था घन,
बूँदों संग, छूटा था साथ !
रात भर बरसती रही, वो भीगी सी रात!
कोई, घटाओं से कह दे,
मन में दबी, सदाओं से कह दे,
भीगती है क्यूँ,
संग बूँद के, इतना मचलती है क्यूँ?
जज्बातों की, है ये बात!
रात भर बरसती रही, वो भीगी सी रात!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा