Wednesday 16 December 2015

विवशताएँ

मन विवश क्युं?
भावनाएं बेकल क्युं?
प्यार कुंठित क्युं?

क्युं है ये दायरे,
क्युं हैं ये पहरे,
क्युं है ये विवशता,

क्या प्यार के अहसास को
जन्म पाने की भी उम्र तय होती है?
विवशताओं के दायरों मे पिरोए संबंध
क्या जन्म दे पाते हैं प्यार को?
क्या इनमे भावनाओं को जगाने की
प्रचूर ऊष्मा होती है?

शायद नहीं....!

जीवन के सुदूर पलों का प्यार,
शायद बंदिशों मे दब कर 
दम तोड़ देती है या फिर
दुनिया इन्हें नाजायज ठहरा देती है।

क्या प्यार कभी नाजायज हो सकता है?

जीवन एक अहसास

जीवन एक अहसास,
कहीं खुशी से लबरेज लम्हें,
तो कही दुख के अंतहीन पल,
कभी चैन के दो पल,
तो कही विवश करती जरूरतें।

इन्ही विविधताओं के बीच
जीवन जीने की बाध्यता.....!

कुछ भी तो नही है हमारे वश मे,
फिर भी सभी कुछ वश में कर लेने की, 
अंतहीन चाह,
समस्त मानवीय संवेदनाओं पर
दंभ और अभिमान का दंश!

करुणा, विनय, प्यार, अहसास,
ये सभी किताबों में अंकित
मृत अक्षरों से दिखते है.......!

जीवन को जीवंत बनाने का अहसास,
न जाने किधर गुम है
शायद इन सिक्को की झंकार में,
या फिर,
हमारी सामंती मंशाओं के बीच
पिस सी गई है?