Thursday 28 January 2016

भटकता मन

निज मन तू क्युँ रत बहलावे में नित दिन!

मन तू सच क्युँ न बोलता?
जीवन का दर्पण दिखा मुँह क्युँ फेरता?
तू ही तो मेरा इक निज है,
दर्पण तू ही दिखलाता जीवन को,
फिर तू क्युँ छलता रहता है मुझको?

निज मन तू क्युँ भटकता रहता नित दिन!

चंचल सा चितवन तेरा,
एकाग्रचित्त तू कभी रह नही सकता,
समझेगा तू मेरी दुविधा कैसे?
तू मेरा अपना पर तू मुझको ही छलता,
मन तू इतना क्युँ बोलता?

निज मन तू किस भुलावे में रहता नित दिन?

Wednesday 27 January 2016

इंतजार एकाकीपन का


कौन किसका इंतजार करता इस जग में,
क्षणिक इंतजार भी डसता इस मन को,
पार इंतजार की उस क्षण के,
इक एकाकीपन रहता जीवन में,
फिर क्युँ किसी का इंतजार करूँ इस जग में।

वक्त इंतजार नही करता किसी का जग में,
वक्त अथक आजीवन चलता ही रहता,
इंतजार उसे पार उस क्षण का,
कब एकाकीपन मिलता उससे जीवन में,
फिर क्युँ वो इंतजार करे किसी का इस जग में।

अथक इंतजार जो भी करता इस जग में,
पागल उस मानव सा ना कोई मैं पाता,
घड़ियाँ गिनता वो उस क्षण का,
जो लौट कर वापस ना आता जीवन में,
फिर क्युँ करता वो इंतजार बेजार इस जग में।

स्वप्न स्मृति

स्वप्नों की क्षणिक आभा,
विस्मृत होती मानस पटल पे,
अंकित कर जाते कितने ही,
स्मृतियों की धुँधली रेखायें इनमें।

स्वर लहर मधुर स्वप्नों की,
नित अटखेलियाँ करती तट निद्रा पर,
सुसुप्त मन हिलकोर जाती,
खीच जाती स्मृतियों की रेखायें इनमे।

ओ स्वप्न वीणा के संगीत,
नित छेड़ते क्युँ तुम निद्रा के तार,
छेड़ते धुन मधु स्मृतियों की,
बनती स्मृति की कई श्रृंखलाएं इनमें।

प्रभात कोहरे में मिट जाती,
स्वप्न छाया का विस्मृत कारागार,
रह जाती क्षणिक स्मृति शेष सी,
विस्तृत स्मृतियों की लघु रेखाएँ इनमे।

उम्मीद

छंद रचता कोई गीत गाता उम्मीद का,
हसरतें पलती दिलों मे इक उम्मीद की।

ख्वाहिशें पुरस्सर हुई हैं यहाँ उम्मीद से,
फूल खिलते वादियों मे इक उम्मीद से।

तन्हा बसर करता जहाँ इक उम्मीद से,
उम्र कटती गालिबों की इक उम्मीद से।

कोई छोड़ पाता नहीं दामन उम्मीद का,
मुफलिसी में भी पला लम्हा उम्मीद का।

उम्र भर उम्मीद की पंख लिए उड़ते रहे,
पंख उम्मीदों के यहाँ हर पल कतरे गए।

Tuesday 26 January 2016

क्षणिक पतंगे की जलती कहानी

प्रीत की तेरी,
कहानी क्षणिक पतंगे सी,
अमर प्रीत,
है तेरी जलते दीपक सी,
था लघु,
जीवन तेरी प्रीत का,
पर उम्र सारी,
तूने याद में बीता दी,
कह सकुंगा,
न मै ये जलती कहानी।
मेरे ठंढ़े हृहय में,
अधूरी वो जलती कहानी।

मैं भूलना चाहता,
अब वो जलती कहानी,
जिऊ कैसे,
जब आग उर में होे फानी,
क्या तुम कह पाओगी,
फिर कोई नई कहानी,
क्या तेरे हृदय,
सजेगा आज ठंढा पानी,
क्षणिक पतंगे की,
आग तुझको है फिर जलानी,
मेरे ठंढ़े हृहय में,
तब पू्री होगी वो जलती कहानी।

मौसम सा एहसास

धूप की घनी छाँव तुम,
शीतल चाँदनी सम तुम प्रखर,
सुख का एहसास तुम,
वृक्ष की लताओं सी बिखरी जुल्फें,
नैन पनघट मरुद्यान सम,
ठहर जाऊँ मैं तनिक विश्राम कर लूँ।

ठंढ की गर्म धूप तुम,
प्रात: किरण सम तुम उज्जवल,
नर्म मखमली ओस तुम,
हलकी घटाओं सी बलखाती चाल,
रूप सुलगती आग सम,
ठहर जाऊँ मैं तनिक आराम कर लूँ।

बारिश की बूँद तुम,
मधु कण मधु सम तुम मधुर,
शुष्क हृदय की चाह तुम,
बूँदों से भरी बादलों सा भीगा चेहरा,
ओष्ठ लरजते बादलों सम,
ठहर जाऊँ मै तनिक संग तेरे भीग लूं ।

तू लम्हों मे रह

लम्हों की दास्तान से,
बनी है कहानी कायनात की,
दो लम्हा प्यार का मैं भी गुजार लूँ,
इक कहानी प्यारी सी बन जाए मेरी भी!

लम्हा ठहर गया अगर,
रुक जाएगी सारी कायनात भी,
दो पल संग-संग चल साथ गुजार लूँ,
संग तेरे गुजर जाए रास्ते जिन्दगी की मेरी भी!

लम्हा लम्हा लम्हों मे रह,
रच रच सृष्टि करता कायनात की,
दो लम्हा तू भी मुझमें गुजर बसर ले,
रच सँवर जाए छोटी सी कायनात कही मेरी भी!

तू मेरा सुखद लम्हा वही,
तू कहानी मेरे अमिट प्यार की,
दो घड़ी सुख के फिर संग तेरे गुजार लूँ,
रच बस जाएंगी यादें अन्तस्थ तुझमे कही मेरी भी!

धड़कनों की सदाएँ

किसकी सदाएँ गूँजती वादियों के दरमियाँ फिर,
धड़कने किसी की सुनाई दे रही मुझको यहाँ फिर,
क्या हृदय किसी विरहन का व्यथित हो गया है फिर?
या याद में किसी के कोई रो रहा है फिर?

ठहरो जरा संगीत धड़कनों की सुन लूँ मैं भी
अपने सुरमंदिर की तानपूरा का तार बुन लूँ मैं भी,
सुर चुरा लू दर्द का आज व्यथित हो रहा मैं भी,
या याद मे किसी की आज रो रहा हूँ मैं भी?

व्यथित हृदय की धड़कनें बेसुरी सी आज क्युँ,
भूल गए हैं लय सारे इस वीणा के तार क्युँ,
विरहन की संगीत को आज मिलते नही हैं साज क्युँ,
या याद मे विरहन की मैं बिसर गया संगीत ज्युँ?

तेरा अस्तित्व

इक जर्रा मात्र भी नही तू सृष्टि के विस्तार का,
अस्तित्व तेरा! व्योम के धूल कण सा भी नहीं!
इक लघुक्षण भी तो नही तू इस अनंतकाल का,
फिर क्यूँ भला इतना अभिमान तुझमें पल रहा।

अपनी लघुता का सत्य, तू स्वीकार कर यहाँ,
अस्तित्व की रक्षा को, तू संघर्ष कर रहा यहाँ,
पराशक्ति तो बस एक जो राज हमपे कर रहा,
फिर क्युँ भला तू नाज इतना खुद पे कर रहा।

उस दिव्य अनन्त की प्रखर से तो है तू खिला,
उस व्योम की ही किसी शक्ति ने तुझको जना,
इस धरा को उस शक्ति ने तेरी कर्मस्थली चुना,
फिर क्यूँ भला उस कर्मपथ से तू विमुख रहा।

Monday 25 January 2016

यादों की शाम

शामें गुजर रही यादों की तन्हाईयों में,
संग तेरे गाए गजल जो उन लम्हों में,
डूबते  हैं ख्याल, अब उन रुबाईयों मे,
लम्हा लम्हा तन्हा रह गई हैं शाम कीा

मिश्री की डलियों सी अनकही बातें,
मासूम चेहरा मोहिनी मुस्कान समेटे,
नशीली आँखों पे झुकी तैरती पलकें,
संग गायी ग़ज़ल बन गई हैं शाम की।

जुल्फों की धुंध सी छाये काले बादल,
आसमाँ पे दूर उड़ता तुम्हारा आँचल,
पुकारता हुआ तुम्हारे हाथों का दामन,
चिलमन बन घटा सी छाती शाम की।