Thursday 20 October 2016

दीपावली / दिवाली

इक दीप मन में जले, तम की भयावह रात ढ़ले...

है दुष्कर सी ढ़लती ये शाम,
अंधेरों की ओर डग ये पल-पल भरे,
है अंधेरी स्याह सी ये रात,
तिल-तिल सा ये जीवन जिसमें गले,
चाहूँ मैं वो दीपावली, जो ऊजाले जीवन में भरे....

है बुझ रही वो नन्ही सी दीप,
जूझकर तम से प्रकाश जिसने दिए,
है वो ईक आस का प्रतीक,
कुछ बूँद अपनी स्नेह के उसमें भरे,
मना लूँ मैं वो दीपावली, दीप आस का जलता रहे....

है संशय के विकट बादल घिरे,
अज्ञानता की घनघोर सी चादर लिए,
ताले विवेक पर हैं यहाँ जड़े,
प्रकाश ज्ञान का मन में अब कौन भरे?
मनाऊँ अब वो दीपावली, वैर, द्वेश, अज्ञान जले....

इक दीप मन में जले, तम की भयावह रात ढ़ले...

Wednesday 19 October 2016

करवा चौथ - प्रीत

On Karwa Chouth....few lines

प्रीत हो तो कैसी?

किरकिरी सी काजल लगे,
        नैनों  में सुरमा  सहा ना जाए,
जिन नैनों में  श्याम बसे,
       वहाँ  फिर  दूजा कौन समाए...

प्रीत न कीजिये पंछी जैसी,
       जल सूखे पनघट से उड़ जाए,
प्रीत तो कीजै मछली जैसी,
       जल सूखे तलछट में मर जाए...

पतंगे सी भली प्रीत की रीत,
              नित दिए संग जल जाए,
प्रीत क्या जाने वो छिपकली,
              बुझे दीप कहीं छुप जाए...

राधा के ज्युँ जब  प्रीत  निभै,
             मथुरा राधा मय हुई जाए,
जब प्रीत श्याम संग मीरा करै,
             सुर प्रेम ग्रंथ की रच जाए....

करवा चौथ की ढेर सारी शुभकामनाएँ.....

नन्ही बूँद

मचलती सी इक नन्ही बूँद ही तो थे तुम....
निकल पड़ी थी आसमान से जो इक सीप की तलाश में,
न भय ऊँचाई में गिरकर बिखरने का मन में,
न खौफ तपती सी जमीं पर छन से जलने का तुम्हे।

मचलती सी इक नन्ही बूँद ही तो थे तुम....
ये तुझको भी थी खबर, कई बूँद झुलसी है इस आग में,
दूर आसमाँ से हुए थे तुम, अंजाने तलाश में,
खोया हैं वजूद अपना, कितने ही बूंदों ने इस राह में।

मचलती सी इक नन्ही बूँद ही तो थे तुम....
था उधर चाहतों का इक नया संसार, तेरे इंतजार में,
वो पत्तियाँ भी बाग की, सूखी पड़ी थी राह में,
आकर भिगोते तुम ये दामन, सूखी थी जो तेरी चाह में।

मचलती सी इक नन्ही बूँद ही तो थे तुम....
है कायम तेरा वजूद, उस बूँद की तरह मेरे दिल में,
बन गई मोती जो इक दिन, जा गिरी जो सीप में,
अब छलकते हैं जो बन के आँसू, डबडबाकर नैन में। 

Tuesday 18 October 2016

मानसरोवर

तुम देखो ना, खिल आए हैं कमल असंख्य,
तैरते है हर पल ये मेरी हृदय के मानसरोवर में,
कुछ दिखती हैं ये तेरी यादों की परछाई सी,
लगती है कुछ तेरी बातों की अमराई सी,
कुछ बीते लम्हों की नटखट तरुणाई सी,
तुम झांको ना, मेरी हृदय के मानसरोवर में....

तुम देखो ना, प्यारे कितने हैं ये कमल असंख्य,
श्रृंगार विविध रूप के तेरे, उभर आए हैं इनमें,
कुछ मुस्कान लिए तेरे चेहरे के आभा सी,
स्वागत करती ये खुली खुली तेरी आँखों सी,
उभर आई है लालिमा इनमें तेरे होठों की,
तुम उतरो ना, मेरी हृदय के मानसरोवर में....

तुम देखो ना, कोमल कैसे हैं ये कमल असंख्य
करुणा का अगाध सागर जैसे आ सिमटा है इनमें,
कुछ शान्त, स्निग्ध भाव लिए तेरे मुखरे सी,
नर्म स्पर्श करती ये पंखुड़ियाँ तेरे हाथों सी,
लावण्य भर लाई जैसे ये ममतामयी तेरे सूरत की,
तुम आकर देखो ना, मेरी हृदय के मानसरोवर में....

खिल आए हैं कमल असंख्य तेरी ही परछाई के.....

Sunday 16 October 2016

वजूद / अस्तित्व

अस्तित्व की तलाश में, तू उड़ खुले आकाश में.....

ऐ मन के परिंदे, तू उड़ चल हवाओं में,
बह जा कहीं बहती नदी सी उतरकर पहाड़ों में,
स्वच्छंद साँस ले तू खुलकर फिजाओं में।

वजह ढूंढ ले तू अपने वजूद के होने की,
हैं अकेला सब यहाँ, राहें अकेली सबके मन की,
ढूंढने होंगे तुझे, वजह अपने अस्तित्व की।

आजाद सा तू परिंदा अबोध अज्ञान सा,
दिशाहीन रास्तों पर, यूँ ही कहीं क्यूँ भटक रहा,
पथ प्रगति के है, तेरे सामने प्रशस्त खड़ा।

भले ही विपरीत हों, ये झोंके हवाओं के,
सशक्त पंख हैं तेरे,रख भरोसा अपनी उड़ानों पे,
है ये जंग अस्तित्व की, जीतनी होगी तुझे।

ऐ मन के परिंदे, तू उड़ अपनी वजूद ढूंढने,
बहकती नदी बन, बह पहाड़ों के हृदय चीर के,
वजह जिंदगी को दे, वजूद खुद की ढूंढ ले।

तू उड़ खुले आकाश में, अस्तित्व की तलाश में....

Saturday 15 October 2016

इक मोड़

अजब सी इक मोड़ पर रुकी है जिंदगानी,
न रास्तों का ठिकाना, न खत्म हो रही है कहानी।

लिए जा रहा किधर हमें ये मोड़ जिन्दगी के,
है घुप्प सा अंधेरा, लुट चुके हैं उजाले रौशनी के,
ओझल हुई है अब मंजिलें चाहतों की नजर से,
उलझी सी ये जिन्दगानी हालातों में जंजीर के।

अवरुद्ध हैं इस मोड़ पर हर रास्ते जिन्दगी के,
जैसे कतरे हों पर किसी ने हर ख्वाब और खुशी के,
ताले जड़ दिए हों किसी ने बुद्धि और विवेक पे,
नवीनता जिन्दगी की खो रही अंधेरी सी सुरंग में।

अजब सी है ये मोड़.....इस जिंदगी की रास्तों के.....

पर कहानी जिन्दगी की खत्म नहीं इस मोड़ पे,
बुनियाद हौसलों की रखनी है इक नई, इस मोड़ पे,
ऊँची उड़ान जिंदगी की भरनी हमें है विवेक से,
आयाम ऊंचाईयों की नई मिलेंगी हमें इसी मोड़ से।

यूँ ही मिल जाती नही सफलता सरल रास्तों पे,
शिखर चूमने के ये रास्ते, हैं गुजरते कई गहराईयों से,
चीरकर पत्थरों का सीना बहती है धार नदियों के,
इस मोड़ से मिलेगी, इक नई शुरुआत कहानियों के।

अजब सी इस मोड़ पे, नई मोड़ है जिन्दगानियों के.....

Thursday 13 October 2016

सौगातें

सौगातें उन लम्हों की, मैं बाँटता हूँ जीवन की झोली से...

अपने मन की तेज धार में उन्मुक्त बह जाने को,
मन ही मन खुल कर मुस्काने को,
गुजारे थे कुछ लम्हे मैनें संग जीवन के,
बस वो ही लम्हे हैं थाथी, मेरे बोझिल से जीवन के।

सौगातें उन लम्हों की, मैं बाँटता हूँ जीवन की झोली से...

चढती साँसों की लय में दूर तक बह जाने को,
कंपन धड़कन की सुन जाने को,
बिताए थे कुछ लम्हे मैने एकाकीपन के,
बस वो लम्हे ही हैं साथी, मेरे जीवन की तन्हाई के।

सौगातें उन लम्हों की, मैं बाँटता हूँ जीवन की झोली से...

दो नैनों की प्यासी पनघट में नीर भर लाने को,
करुणा के सागर तट छलकाने को,
गुजारे थे कुछ लम्हे मैने तुम बिन विरहा के,
बस वो लम्हे हैं काफी, नैनों से सागर छलकाने के।

सौगातें उन लम्हों की, मैं बाँटता हूँ जीवन की झोली से...