लिखते रहे जिन्दगी की किताब सूखी साहिलों पे कहीं...
डोलती सी इक पतवार की तरह,
दूर खोए कहीं अपनी साहिल से वो थे,
उनकी फितरत तो थी टूटते एतवार की तरह,
वो साहिल के कभी तलबगार ही न थे।
मैं किताबों में बंद कहानी सा खोया साहिलों पे कहीं...
वो भँवर में रहे डूबते मौजों की तरह,
कहीं बेखबर जिन्दगी की कहानी से वो थे,
उनकी चाहत तो रही डूबते इन्तजार की तरह,
वो साहिलों के कहीं मुकाबिल ही न थे।
बिखरा है ये जीवन इन्तजार में उसी साहिलों पे कहीं...
डोलती सी इक पतवार की तरह,
दूर खोए कहीं अपनी साहिल से वो थे,
उनकी फितरत तो थी टूटते एतवार की तरह,
वो साहिल के कभी तलबगार ही न थे।
मैं किताबों में बंद कहानी सा खोया साहिलों पे कहीं...
वो भँवर में रहे डूबते मौजों की तरह,
कहीं बेखबर जिन्दगी की कहानी से वो थे,
उनकी चाहत तो रही डूबते इन्तजार की तरह,
वो साहिलों के कहीं मुकाबिल ही न थे।
बिखरा है ये जीवन इन्तजार में उसी साहिलों पे कहीं...
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