भँवरों के गीत सब, अजनबी हो चुके हैं अब,
गुनहुनाहटों में गीत की, अब कहाँ वो कसक,
थक चुका है वो भँवरा, गीत गा-गा के अब।
वो भी क्या दिन थे, बाग में झूमता वो बावरा,
धुन पे उस गीत की, डोलती थी कली-कली,
गीत अब वो गुम कहाँ, है गुम कहाँ वो कली।
जाने किसकी तलाश में अब घूमता वो बावरा,
डाल डाल घूमकर, पूछता उस कली का पता,
बेखबर वो बावरा, कली तो हो चुकी थी फना।
अब भी वही गीत प्रीत के, गाता है वो भँवरा,
धुन एक ही रात दिन, गुनगुनाता है वो बावरा,
अजनबी सा बाग में, मंडराता अब वो बावरा।
गुनहुनाहटों में गीत की, अब कहाँ वो कसक,
थक चुका है वो भँवरा, गीत गा-गा के अब।
वो भी क्या दिन थे, बाग में झूमता वो बावरा,
धुन पे उस गीत की, डोलती थी कली-कली,
गीत अब वो गुम कहाँ, है गुम कहाँ वो कली।
जाने किसकी तलाश में अब घूमता वो बावरा,
डाल डाल घूमकर, पूछता उस कली का पता,
बेखबर वो बावरा, कली तो हो चुकी थी फना।
अब भी वही गीत प्रीत के, गाता है वो भँवरा,
धुन एक ही रात दिन, गुनगुनाता है वो बावरा,
अजनबी सा बाग में, मंडराता अब वो बावरा।
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