हैं कितने सम्मोहक ये, उनींदे से अतिरंजित पल......
कतारें दीप की जल रही हर राह हर पथ पर,
जन-सैलाब उमर आया है हर नदी हर घाट पर,
हो रहा आलोकित, अंधियारे मन का प्रस्तर।
कतारें दीप की जल रही हर राह हर पथ पर,
जन-सैलाब उमर आया है हर नदी हर घाट पर,
हो रहा आलोकित, अंधियारे मन का प्रस्तर।
हैं कितने मनभावन ये, उनींदे से अतिरंजित पल......
मंद-मंद पुरवैयों संग घुमर रहा नभ पर बादल,
बिखेरती किरणें सिंदूरी वो सूरज अब रहा निकल,
हो रहा सुशोभित, लाल-पीत वर्णों से मुखमंडल।
हैं कितने आकर्षक ये, उनींदे से अतिरंजित पल......
प्रकाशित है नभमंडल, प्राणमयी हुए हैं मुखरे,
कली-कली मुस्काई है, रंग फूलों के भी हैं निखरे,
हो रहा आह्लादित, विहँस रहे हैं हर चेहरे।
हैं कितने मनमोहक ये, उनींदे से अतिरंजित पल......
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