Monday, 7 November 2016

अतिरंजित पल

हैं कितने सम्मोहक ये, उनींदे से अतिरंजित पल......

कतारें दीप की जल रही हर राह हर पथ पर,
जन-सैलाब उमर आया है हर नदी हर घाट पर,
हो रहा आलोकित, अंधियारे मन का प्रस्तर।

हैं कितने मनभावन ये, उनींदे से अतिरंजित पल......

मंद-मंद पुरवैयों संग घुमर रहा नभ पर बादल,
बिखेरती किरणें सिंदूरी वो सूरज अब रहा निकल,
हो रहा सुशोभित, लाल-पीत वर्णों से मुखमंडल।

हैं कितने आकर्षक ये, उनींदे से अतिरंजित पल......

प्रकाशित है नभमंडल, प्राणमयी हुए हैं मुखरे,
कली-कली मुस्काई है, रंग फूलों के भी हैं निखरे,
हो रहा आह्लादित, विहँस रहे हैं हर चेहरे।

हैं कितने मनमोहक ये, उनींदे से अतिरंजित पल......

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