इक दिवा स्वप्न में ढ़लकर, संग मेरे तुम चल रहे ....
कल्पना की चादर मे सिमटी, तुम जीवन में ढ़ल रहे ....
अब गीत विरह के गाने को,
कोई पल ना आयेगा,
मन के मधुबन में ओ मीते,
प्रेम प्रबल हो गायेगा..............
सुरमई गीतों में रचकर, सरगम मे तुम ढल रहे ....
कल्पना की चादर मे सिमटी, तुम जीवन में ढ़ल रहे ....
अब एकाकी ही रह जाने को,
कोई मन ना तड़पेगा,
मन के आंगन में ओ मेरे मीते,
तन्हाई गीतों संग गूंजेगा............
संध्या प्रहर ये सुनहरी, भावों में तुम पल रहे ....
कल्पना की चादर मे सिमटी, तुम जीवन में ढ़ल रहे ....
अब मोहनी सी मूरत देखने को,
कोई पल न रिझाएगा,
सांझ प्रहर क्षितिज नित ओ मीते ,
सूरत तेरी ही दिखलाएगा..........
गूढ़ शब्द बन तुम मिले, अर्थ में तुम ढ़ल रहे.....
कल्पना की चादर मे सिमटी, तुम जीवन में ढ़ल रहे ....
अब भाव हृदय के पढ़ पाने को,
कोई मन ना तरसेगा,
गूढ़ रहस्य उन शब्दों के ओ मीते,
नैन तेरे मुझसे कह जाएगा..........
इक दिवा स्वप्न की भांति, संग मेरे तुम चल रहे ....
कल्पना की चादर मे सिमटी, तुम जीवन में ढ़ल रहे ....
कल्पना की चादर मे सिमटी, तुम जीवन में ढ़ल रहे ....
अब गीत विरह के गाने को,
कोई पल ना आयेगा,
मन के मधुबन में ओ मीते,
प्रेम प्रबल हो गायेगा..............
सुरमई गीतों में रचकर, सरगम मे तुम ढल रहे ....
कल्पना की चादर मे सिमटी, तुम जीवन में ढ़ल रहे ....
अब एकाकी ही रह जाने को,
कोई मन ना तड़पेगा,
मन के आंगन में ओ मेरे मीते,
तन्हाई गीतों संग गूंजेगा............
संध्या प्रहर ये सुनहरी, भावों में तुम पल रहे ....
कल्पना की चादर मे सिमटी, तुम जीवन में ढ़ल रहे ....
अब मोहनी सी मूरत देखने को,
कोई पल न रिझाएगा,
सांझ प्रहर क्षितिज नित ओ मीते ,
सूरत तेरी ही दिखलाएगा..........
गूढ़ शब्द बन तुम मिले, अर्थ में तुम ढ़ल रहे.....
कल्पना की चादर मे सिमटी, तुम जीवन में ढ़ल रहे ....
अब भाव हृदय के पढ़ पाने को,
कोई मन ना तरसेगा,
गूढ़ रहस्य उन शब्दों के ओ मीते,
नैन तेरे मुझसे कह जाएगा..........
इक दिवा स्वप्न की भांति, संग मेरे तुम चल रहे ....
कल्पना की चादर मे सिमटी, तुम जीवन में ढ़ल रहे ....
No comments:
Post a Comment