Friday 4 November 2016

चाहो तो

चाहो तो पढ़ लेना तुम वो पाती,
हवाओं के कागज पर लिखकर हमनें जो भेजी,
ना कोई अक्षर इनमें, ना हैं स्याही के रंग,
बस है इक यादों की खुश्बू चंचल पुरवाई के संग।

चाहो तो रख लेना तुम वो यादें,
घटाओं की चुनरी में कलियों संग हमने जो बाँधे,
ना कोई पहरे इन पे, ना शिकवे ना रंज,
बस है इक ठंढी सी छाँव बादल की परछाई के संग।

चाहो तो सुन लेना तुम वो गीत,
सागर की लहरों ने जो छेड़ी है सरगम की रीत,
ना हैं वीणा के सुर, ना पायल की रुनझुन,
बस है इक अधूरा सा संगीत सागर की तन्हाई के संग।

चाहो तो पढ़ लेना तुम वो संदेशे,
किरणों संग नभ पर लिखकर हैं हमने जो भेजे,
ना है शब्द कोई, ना कोई भी पूर्णविराम,
बस है इक रंग गुलनारी सी थोड़ी श्यामल रंगों के संग।

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