शब्दों को मेरे, गर मिल जाते पंख तुम्हारे,
उड़ आते पास तेरे, लग जाते ये अंग तुम्हारे!
तरंग सी कहीं उठती, कोई कल्पना,
लहर सी बन जाती, नवीन कोई रचना,
शब्द, भर लेते ऊँचे कई उड़ान,
तकते नभ से, नैन तुम्हारे, पंख पसारे,
उड़ आते, फिर पास तेरे!
शब्दों को मेरे, गर मिल जाते पंख तुम्हारे!
सज उठती, मेरी कोरी सी कल्पना,
रचनाओं से अलग, दिखती मेरी रचना,
असाधारण से होते, सारे वर्णन,
गर नैनों के तेरे, पा लेते ये निमंत्रण,
उड़ आते, फिर पास तेरे!
शब्दों को मेरे, गर मिल जाते पंख तुम्हारे!
पुल, तारीफों के, बंध जाते नभ तक,
बातें मेरी, शब्दों में ढ़ल, जाते तुझ तक,
रोकती वो राहें, थाम कर बाहें,
सुनहरे पंखों वाले, कुछ शब्द हमारे,
उड़ आते, फिर पास तेरे!
शब्दों को मेरे, गर मिल जाते पंख तुम्हारे!
उड़ आते पास तेरे, लग जाते ये अंग तुम्हारे!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
उड़ आते पास तेरे, लग जाते ये अंग तुम्हारे!
तरंग सी कहीं उठती, कोई कल्पना,
लहर सी बन जाती, नवीन कोई रचना,
शब्द, भर लेते ऊँचे कई उड़ान,
तकते नभ से, नैन तुम्हारे, पंख पसारे,
उड़ आते, फिर पास तेरे!
शब्दों को मेरे, गर मिल जाते पंख तुम्हारे!
सज उठती, मेरी कोरी सी कल्पना,
रचनाओं से अलग, दिखती मेरी रचना,
असाधारण से होते, सारे वर्णन,
गर नैनों के तेरे, पा लेते ये निमंत्रण,
उड़ आते, फिर पास तेरे!
शब्दों को मेरे, गर मिल जाते पंख तुम्हारे!
पुल, तारीफों के, बंध जाते नभ तक,
बातें मेरी, शब्दों में ढ़ल, जाते तुझ तक,
रोकती वो राहें, थाम कर बाहें,
सुनहरे पंखों वाले, कुछ शब्द हमारे,
उड़ आते, फिर पास तेरे!
शब्दों को मेरे, गर मिल जाते पंख तुम्हारे!
उड़ आते पास तेरे, लग जाते ये अंग तुम्हारे!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (२८ -१०-२०१९ ) को " सृष्टि में अँधकार का अस्तित्त्व क्यों है?" ( चर्चा अंक - ३५०२) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
सादर आभार ।
Deleteबहुत अच्छा
ReplyDeleteस्वागत है आपका।
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