Monday 7 October 2019

भग्नावशेष

बचे हैं कुछ ही दिन, अब कुछ ही शामें शेष हैं!
सपने हैं कुछ रूठे हुए, कुछ बचे,
भग्नावशेष हैं!

आधी राह आखिर, क्यूँ थका है मुसाफिर?
सफर के उस छोड़ तक, है जाना तुझे मुसाफिर,
परवाह करता है क्यूँ, छूटे हुए उस मोड़ की,
तु सुन ले जरा, बातें हृदय के बंद कोर की,
इस दिल में, अरमान अभी कुछ शेष हैं!

बचे हैं कुछ ही दिन, अब कुछ ही शामें शेष हैं!
सपने हैं कुछ रूठे हुए, कुछ बचे,
भग्नावशेष हैं!

आधी कट चुकी है, जो काटनी थी एक उम्र,
भग्न अवशेषों के मध्य, अब काटनी है शेष उम्र,
दफ्न भी करनी पड़ेंगी, अस्थियाँ उस उम्र की,
बिखरी हुई, सारी निशानियाँ भग्नावशेष की,
इस उम्र की, सपनोंं केे जो अवशेष हैं!

बचे हैं कुछ ही दिन, अब कुछ ही शामें शेष हैं!
सपने हैं कुछ रूठे हुए, कुछ बचे,
भग्नावशेष हैं!

जर्जर हो चले थे जो, भग्न वो ही सपने हुए,
समय की इस गर्भ में, दफ्न तो सारे अपने हुए,
रह सका है कौन, बिखरे हुए सपनों संग यहाँ,
नित काल-कवलित, होते रहे हैं सपने जवाँ,
नवीन सपने, फिर भी हजारों शेष है!

बचे हैं कुछ ही दिन, अब कुछ ही शामें शेष हैं!
सपने हैं कुछ रूठे हुए, कुछ बचे,
भग्नावशेष हैं!

बुन ले सपने नए, बना ले तू अट्टालिकाएं,
भग्न हो चुकी हैं जो, सजा ले वो अट्टालिकाएं,
बची है कुछ शाम जो, तू हँसी वो शाम कर,
बची है जाम जो, अपनों के ही नाम कर,
इस सांझ में, सितारे अभी कुछ शेष हैं!

बचे हैं कुछ ही दिन, अब कुछ ही शामें शेष हैं!
सपने हैं कुछ रूठे हुए, कुछ बचे,
भग्नावशेष हैं!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (08-10-2019) को     "झूठ रहा है हार?"   (चर्चा अंक- 3482)  पर भी होगी। --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    -- 
    श्री रामनवमी और विजयादशमी की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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