Thursday 31 October 2019

उम्मीद

हरी है उम्मीद, खुले हैं उम्मीदों के पट!

विपत्तियों के, ऊबते हर क्षण में,
प्रतिक्षण, जूझते मन में,
मंद पड़ते, डूबते उस प्रकाश-किरण में,
कहीं पलती है, इक उम्मीद,
उम्मीद की, इक महीन किरण,
आशा के, उड़ते धूल कण,
उम्मीदों के क्षण!

हौले से, कोई दे जाता है ढ़ाढ़स,
छुअन, दे जाती है राहत,
आशा-प्रत्याशा, ले ही लेती है पुनर्जन्म,
आभासी, इस प्रस्फुटन में,
कुछ संभलता है, बिखरा मन,
बांध जाते है टूटे से कोर,
उम्मीदों के डोर!

उपलाते, डगमगाते उस क्षण में,
हताश, साँसों के घन में,
अवरुद्ध राह वाले, इस जीवन-क्रम में,
टूटते, डूबते भरोसे के मध्य,
कहीं तैरती है, भरोसे की नैय्या,
दिखते हैं, मझधार किनारे,
उम्मीदों के तट!

हरी है उम्मीद, खुले हैं उम्मीदों के पट!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

12 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 31 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. यही तो सकारात्मकता की अमर कहानी है।
    उम्मीद के कायम रहने से ही दुनियां में खुशियां ही खुशियां है वरना तो त्योहार के दिन भी लड़ाई, झगड़े, और हताश मानुष की कमी नहीं होती।
    बहुत ही उम्दा रचना।

    यहाँ स्वागत है 👉👉 कविता 

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय रोहितास जी।

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (01-11-2019) को "यूं ही झुकते नहीं आसमान" (चर्चा अंक- 3506) " पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित हैं….

    -अनीता लागुरी 'अनु'
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  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,उम्मींदे ही तो जीवन एक मात्र सहारा होता हैं ,सादर नमस्कार

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  5. एक बहुत ही प्रसिद्ध पंक्तियां हैं उम्मीद पर ही तो दुनिया कायम है किसी भी चीज की उम्मीद हमें जीवन जीने का संबल प्रदान करती है अगर हम उम्मीद विहीन हो गए तो हम हारे हुए इंसानों की श्रेणी में आ जाएं.. आपकी रचना को पढ़कर दुगने उत्साह से लबरेज हो गई हूँ बहुत अच्छा लिखा आपने

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद । रचना सार्थक हुई समझिए ।

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  6. हरी है उम्मीद, खुले हैं उम्मीदों के पट!
    आशा का दामन थामे सुंदर सृजन।

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