Sunday, 20 September 2020

इंतजार

मन के शुकून सारे, ले चला था इंतजार....

दुविधाओं से भरे, वो शूल से पल,
निरंतर आकाश तकते, दो नैन निश्छल,
संभाले हृदय में, इक लहर प्रतिपल,
वही, इंतजार के दो पल,
करते रहे छल! 
क्षीण से हो चले, सारे आसार...

मन के शुकून सारे, ले चला था इंतजार....

थमी सी राह थी, रुकी सी प्रवाह,
उद्वेलित करती रही, अजनबी सी चाह,
भँवर बन बहते चले, नैनों के प्रवाह,
होने लगी, मूक सी चाह,
दे कौन संबल!
बिखरा, तिनकों सा वो संसार...

मन के शुकून सारे, ले चला था इंतजार....

टूटा था मन, खुद से रूठा ये मन,
कैसी कल्पना, कैसा अदृश्य सा बंधन!
जागी प्यास कैसी, अशेष है सावन,
क्यूँ हुआ, भाव-प्रवण!
धीर, अपना धर!
स्वप्न, कब बन सका अभिसार...

मन के शुकून सारे, ले चला था इंतजार....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

21 comments:

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    1. प्रेरक शब्दों हेतु आभारी हूँ आदरणीय ।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 20 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 21 सितंबर 2020) को 'दीन-ईमान के चोंचले मत करो' (चर्चा अंक-3831) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव

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  4. मिलन तो हक़ीक़त का है तो ही मिलन है
    बहुत गजब लिखे हो साहब।
    उम्दा, उन पलों को बखूबी शब्द।


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    1. प्रेरक शब्दों हेतु आभारी हूँ आदरणीय ।

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  5. बहुत खूब स‍िन्हा साहब, स्वप्न, कब बन सका अभिसार...सच में एकदम सही कहा आपने

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    1. प्रेरक शब्दों हेतु आभारी हूँ आदरणीय

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  6. धीर, अपना धर!
    स्वप्न, कब बन सका अभिसार...
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर ..भावप्रवण।

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    1. प्रेरक शब्दों हेतु आभारी हूँ आदरणीया

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  7. कोमल भावनाओं युक्त सुंदर रचना !!!
    बधाई!!!

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    1. प्रेरक शब्दों हेतु आभारी हूँ आदरणीया

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  8. Replies
    1. प्रेरक शब्दों हेतु आभारी हूँ आदरणीया

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