चुन लूँ, कौन सा पल, कौन सी यादें!
बुनती गई मेरा ही मन, उलझा गई मुझको,
कोई छवि, करती गई विस्मित,
चुप-चुप अपलक गुजारे, पल असीमित,
गूढ़ कितनी, है उसकी बातें!
चुन लूँ, कौन सा पल, कौन सी यादें!
बहाकर ले चला, समय का विस्तार मुझको,
यूँ ही बह चला, पल अपरिमित,
बिखेरकर यादें कई, हुआ वो अपरिचित,
कल, पल ना वो बिसरा दे!
चुन लूँ, कौन सा पल, कौन सी यादें!
ऐ समय, चल तू संग-संग, थाम कर मुझको,
तू कर दे यादें, इस मन पे अंकित,
दिखा फिर वो छवि, तू कर दे अचंभित,
यूँ ना बदल, तू अपने इरादे!
चुन लूँ, कौन सा पल, कौन सी यादें!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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तस्वीर में, मेरी पुत्री ... कुछ पलों को चुनती हुई
वाह! बहुत सुंदर, यादों के तिनकों को बटोरती रचना।
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय विश्वमोहन जी।
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteहिन्दी दिवस की अशेष शुभकामनाएँ।
हिन्द के मस्तक, शोभे जो बिन्दी
Deleteवो है हिन्दी...
सादर नमन।
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-9 -2020 ) को "हिंदी बोलने पर शर्म नहीं, गर्व कीजिए" (चर्चा अंक 3825) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया कामिनी जी।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय ओंकार जी
Deleteहिन्दी दिवस की शुभकामनाएं।
ReplyDeleteहिन्दी दिवस की शुभकामनाओं सहित आभार आदरणीय
Deleteबहुत सुंदर रचना।
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीया।
Deleteशानदार सृजन ।
ReplyDeleteआदरणीया, आपसे सदैव मार्गदर्शन की अपेक्षा बनी रहेगी। आभार।
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