वो दो पल, जैसे घना सा पीपल....
मन्द झौंके उनके, बड़े शीतल,
पत्तियों की, इक सरसराहट,
जैसे, बज उठे हों पायल,
मृदु सी छुअन उसकी, करे चंचल!
वो दो पल, जैसे घना सा पीपल....
यूं भटका सा, इक पथिक मैं,
आकुल, हद से अधिक मैं,
जा ठहरूं, वहीं हर पल,
घनी सी छांव उसकी, करे घायल!
वो दो पल, जैसे घना सा पीपल....
वो घोल दे, हवाओं में संगीत,
छेड़ जाए, सुरमई हर गीत,
तान वो ही, करे पागल,
हैं वो पल समेटे, कितने हलचल!
वो दो पल, जैसे घना सा पीपल....
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 08 दिसंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (8-12-22} को "घर बनाना चाहिए"(चर्चा अंक 4624) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद और हृदयतल से आभार आदरणीय ओंकार जी।।।।
Deleteपीपल के सान्निध्य में बिताए दो पल भी एक याद बनकर साथ रहते हैं, सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद और हृदयतल से आभार आदरणीया अनीता जी।।।।
Deleteपीपल की घनेरी छांव में बीते सुकून भरे पलों की सुन्दर बानगी --
ReplyDeleteवो दो पल, जैसे घना सा पीपल....
बहुत बहुत धन्यवाद और हृदयतल से आभार आदरणीया कविता रावत जी।।।।
Deleteयूं भटका सा, इक पथिक मैं,
ReplyDeleteआकुल, हद से अधिक मैं,
जा ठहरूं, वहीं हर पल,
घनी सी छांव उसकी, करे घायल!
बहुत उम्दा सृजन।
सुन्दर शब्द विन्यास ।
बहुत बहुत धन्यवाद और हृदयतल से आभार आदरणीया सुधा देवरानी जी।।।।
Deleteअक्सर मन को यादों के घने पीपल की छाँव में रुकना बहुत भला लगता है।एक भावपूर्ण अभिव्यक्ति पुरुषोत्तम जी। शब्दनगरी की याद दिला गयी 🙏
ReplyDeleteकोटिशः नमन और हृदयतल से आभार आदरणीया रेणु जी।।।।
Deleteआदरणीय कुमार शर्मा जी ! नमस्कार !
ReplyDeleteवो दो पल, जैसे घना सा पीपल....
पीपल सी घनी भाव भरी रचना ,बहुत अभिनन्दन !
जय श्री कृष्ण !
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय तरुण जी
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