अनवरत प्रवाह को, कब किसी ने कहा,
तू साथ चल!है जीवन, तो है ये चंचलता,
शाश्वत है, जीवंतता,
खुद को ये बुनता,
स्वतः ही, उठता इक लहर सा,
स्वयं, प्रवाह बन चलता,
उफनती मझधार में,
ये ही संबल!
अनवरत प्रवाह को, कब किसी ने कहा,
तू साथ चल!गुदगुदाती, बहती ये पवन,
यूं, रोक लेते कदम,
यूं, छू लेते बदन,
सरकती, यूं जमीं कदमों तले,
सोए, एहसासों को लगे,
ज्यूं, संग कोई चले,
और दे संबल!
अनवरत प्रवाह को, कब किसी ने कहा,
तू साथ चल!बिन पूछे, उभर आते रंग,
खींच ले जाते, संग,
वो चटकते अंग,
लहराती, झूमती सी ये वादियां,
मुखर होती ये कलियां,
पंछियों के कलरव,
मीठे हलचल!
अनवरत प्रवाह को, कब किसी ने कहा,
तू साथ चल!