Showing posts with label विसंगतियां. Show all posts
Showing posts with label विसंगतियां. Show all posts

Thursday, 4 September 2025

आत्मश्लाघा

कर, स्मृतियों को, आत्म-साथ, 
मुग्ध होते थे, पल सारे,
कुंठित मन, अब इन विस्मृतियों से हारे,
हुई स्याह, वो, गलियां!

शायद, धूमिल हो रही स्मृतियाँ,
पसर गईं, स्याह परतें,
मुकर गई, स्मृतियों में लिपटी वो गलियां,
बिखर गई, विस्मृतियाँ!

खुल कर, बिखरे, बुने जो धागे,
नैन उनींदें, अब जागे,
बिखरती, आत्मश्लाघा में पिरोई लड़ियां,
पसरती, ये विस्मृतियाँ!

अब उलझाता, मन को, ये द्वंद्व,
बोझिल सा, हर छंद,
उकेर दूं स्याह परतें, उकेरूँ विस्मृतियाँ,
उकेर दूं, विसंगतियां!

शायद, पुनः, मुखर हो स्मृतियाँ,
आत्मश्लाघित दुनियां,
पुनः कर पाऊं, आत्म-साथ उन को ही,
पुनः रौशन हो गलियां!