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Monday, 14 March 2016

मेरे पूर्वज

मेरे पूर्वज,
कहां चले गए तुम,
किस धुंध में खो गए तुम,
सुर वीणा के तार छेड़कर,
एक नई पीढ़ी की नींव रखकर,
कहीं अनंत में गुम हो गए तुम....

मेरे पूर्वज,
संवेदनाओं के स्वर जगाकर,
मुझसे आत्मीय संबंध बनाकर,
एक संसार नई बसाकर,
जग से मुंह फेर गए तुम,,,,
कहां चले गए तुम.....

मेरे पूर्वज,
छोड़ गए तुम पीछे मुझको,
पर तुम इतना समझ लेना,
तुम्हारे द्वारा स्थापित मानदंडों को,
पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजुंगा मैं,
तुम्हारी संवेदनाओं की थाथी,
रखूंगा मन के कोने में ही कहीं....

मेरे पूर्वज,
सतत इन अविरल आंखों मे,
बसी रहेगी तस्वीर आपकी,
मेरी भावनाओं के दरम्याओं में
जीवनपर्यंत जीवन सार बनकर,
सिर्फ बसे रहोगे तुम,,,,,,,,
और सदा ही बसे रहोगे तुम........,,,,

ओ मेरे पूर्वज......नमन स्वीकारो तुम....