Showing posts with label अंकुरित. Show all posts
Showing posts with label अंकुरित. Show all posts

Saturday 20 February 2016

मैं एक अनछुआ शब्द

मैं अनछुआ शब्द हूँ एक!
किताबों में बन्द पड़ा सदियों से,
पलटे नही गए हैं पन्ने जिस किताब के,
कितने ही बातें अंकुरित इस एक शब्द में,
एहसास पढ़े नही गए अब तक शब्द के मेरे।

एक शब्द की विशात ही क्या?
कुचल दी गई इसे तहों मे किताबों की,
शायद मर्म छुपी इसमे या दर्द की कहानी,
शून्य की ओर तकता कहता नही कुछ जुबानी,
भीड़ में दुनियाँ की शब्दों के खोया राह अन्जानी।

एक शब्द ही तो हूँ मैं!
पड़ा रहने दो किताबों में युँ ही,
कमी कहाँ इस दुनियाँ में शब्दों की,
कौन पूछता है बंद पड़े उन शब्दों को?
कोलाहल जग की क्या कम है सुनने को?

अनछुआ शब्द हूँ रहूँगा अनछुआ!
इस दुनियाँ की कोलाहल दे दूर अनछुआ,
अतृप्त अनुभूतियों की अनुराग से अनछुआ,
व्यक्त रहेगी अस्तित्व मेरी "जीवन कलश" में अनछुआ,
अपनी भावनाओं को खुद मे समेट खो जाऊँगा अनछुआ।

Wednesday 17 February 2016

अनबुझी प्यास

अंकुरित अभिलाषा पलते एहसास,
अनुत्तिरत अनुभूतियाँ ये कैसी प्यास?

अन्तर्द्वन्द अन्तर्मन अंतहीन विश्वास,
क्षणभंगूर निमंत्रण क्षणिक क्या प्यास?

पिघलते दरमियाँ छलकते आकाश,
अनकहे निःस्तब्ध जज्बात कैसी मौन प्यास?

अमरत्व अभिलाषा स्मृति अविनाश,
अंकुरित अनुभूति अनुत्तरित अनबुझी प्यास?

Monday 8 February 2016

जीवन ही जीवन

जीवन ही जीवन होता अंकुरित यहाँ,
हर ओर बिखरा यूँ रूप-सौन्दर्य यहाँ,
कहीं स्वर धारा विविध तरंग भरती,
कही मौन पृथ्वी रस सुधा बरसाती।

सूर्य की प्रदक्षिणा में मगन सब यहाँ,
आकाश में उमड़ते बादल मंडल रवाँ,
दशाें दिशा दौड़ता जीवन प्रवाह यहाँ,
जीवन की तरुनाई से मन भरा कहाँ।

इस ओर उस ओर नयन देखते अब,
अभिवादन करते हैं प्रभात का सब,
प्रीत के आँसू आँखों से बहते हैं तब,
आह्लादित जीवन के सहस्रदल सब।