Showing posts with label अनुत्तरित. Show all posts
Showing posts with label अनुत्तरित. Show all posts

Thursday 17 October 2019

नैन किनारे

उलझे ये दो बूँद तुम्हारे, नैन किनारे!

गम अगाध, तुम सह जाते थे,
बिन कुछ बोले, तुम रह जाते थे,
क्या, पीड़ पुरानी है कोई?
या, फिर बात रुहानी है कोई!
कारण है, कोई ना कोई!
क्यूँ उभरे हैं ये दो बूँद, नैन किनारे!

अनुत्तरित ये प्रश्न, नैन किनारे!

अकारण ही, ये मेघ नहीं छाते,
ये सावन, बिन कारण कब आते,
बदली सी, छाई तो होगी!
मौसम की, रुसवाई तो होगी!
कारण है, कोई ना कोई!
बह रहे बूँद बन धार, नैन किनारे!

अनुत्तरित ये प्रश्न, नैन किनारे!

बगैर आग, ये धुआँ कब उभरे!
चराग बिन, कब काजल ये सँवरे!
कोई आग, जली तो होगी!
हृदय ने ताप, सही तो होगी!
कारण है, कोई ना कोई!
क्यूँ बहते हैं जल-धार, नैन किनारे!

अनुत्तरित ये प्रश्न, नैन किनारे!

इक तन्हाई सी थी, नैन किनारे,
मची है शोर ये कैसी, नैन किनारे,
हलचल, कोई तो होगी,
खलल, किसी ने डाली होगी,
कारण है, कोई ना कोई!
चुप-चुप रहते थे बूँदें, नैन किनारे!

उलझे ये दो बूँद तुम्हारे, नैन किनारे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

Wednesday 17 February 2016

अनबुझी प्यास

अंकुरित अभिलाषा पलते एहसास,
अनुत्तिरत अनुभूतियाँ ये कैसी प्यास?

अन्तर्द्वन्द अन्तर्मन अंतहीन विश्वास,
क्षणभंगूर निमंत्रण क्षणिक क्या प्यास?

पिघलते दरमियाँ छलकते आकाश,
अनकहे निःस्तब्ध जज्बात कैसी मौन प्यास?

अमरत्व अभिलाषा स्मृति अविनाश,
अंकुरित अनुभूति अनुत्तरित अनबुझी प्यास?

उम्मीद की शाख

नाउम्मीद कहाँ वो, उम्मीद की शाख पर बैठा अब भी वो।

एक उम्मीद लिए बैठा वो मन में,
दीदार-ए- तसव्वुर में न जाने किसके,
हसरतें हजार उस दिल की,
ख्वाहिशें सपने रंगीन सजाने की।

एक प्यासा उम्मीद पल रहा वहाँ,
तड़पते छलकते जज्बात हृदय में लिए,
नश्तर नासूर बने उस दिल की,
हसरतें पतंगों सी प्रीत निभाने की।

एक उम्मीद विवश बेचैन वहाँ,
झंझावात सी अनकही अनुभूतियाँ मन में लिए,
निःस्तब्ध पुकार दिल मे उसकी,
चाह सिसकी की प्रतिध्वनि सुनाने की।

नाउम्मीद कहाँ वो, एक उम्मीद लिए बैठा अब भी वो।

Monday 1 February 2016

कितने ही प्रश्न अनुत्तरित!

प्नगति पथ पर कितने ही प्रश्न अनुत्तरित!

पत्थर सा हृदय,
पाषाण सी शिथिल सोच,
शांत दरिया सा अवरुद्ध दिल,
मस्तिष्क निरापद व्यवहार निरंकुश,
मानवीय संवेदनाएँ जाए तो जाए किधर?

प्नगति पथ पर कितने ही प्रश्न अनुत्तरित!

संवेदनाएँ संकुचित,
सोच विषाद में कलुषित,
भावनाएँ काँटों से कटंकित,
विचारधारा अस्पष्ट मन आहत,
इंसानी वेदनाएँ जाए तो जाए किधर?

प्नगति पथ पर कितने ही प्रश्न अनुत्तरित!

वेदनाएँ स्वयं व्यथित,
पीड़ा व्यथा से भी भारी,
दुविधाएँ मन की अंतहीन विकट,
चट्टानी आग सी तपती झुलसाती तपिश,
यातनाओं में चेतनाएँ जाएँ तो जाएँ किधर?

प्नगति पथ पर कितने ही प्रश्न अनुत्तरित!