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Saturday, 29 October 2022

मैं चाहूँ

मैं चाहूँ....

ह्रदय पर तेरे, कोई प्रीत न हो अंकित,
कहीं, मेरे सिवा,
और, कोई गीत न हो अंकित!
बस, सुनती रहो तुम,
और मैं गांऊँ!

मैं चाहूँ....

नैन पटल पर, तेरे, उभरे ना रंग कोई,
मैं ही, उभरूं,
क्षितिज के, सिंदूरी अलकों से,
उतरूं, तेरी पलकों में,
यूं ही, संवरूं!

मैं चाहूँ....

कोई दूजी ना हो, और, कहीं कल्पना,
इक, मेरे सिवा,
उभरे ना, सिंदूरी कोई अल्पना,
बस, सजती रहो तुम,
और, मैं देखूं!

मैं चाहूँ....

मध्य कहीं, रह लो तुम व्यस्त क्षणों में,
छू जाओ तन,
मंद सलिल बन, सांझी वनों में,
दे जाओ, इक एहसास,
मन, रंग लूं!

मैं चाहूँ....

तेरी खुशबू, ले आए मंद बयार कोई,
बस, मुझ तक,
रुक जाए, वो महकी पुरवाई,
यूं, मंत्रमुग्ध करो तुम,
मैं खो जाऊं!

मैं चाहूँ....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Tuesday, 2 June 2020

गौण

वो, जो गौण था!
जरा, मौन था!
वो, तुम न थे, तो वो, कौन था?

मंद सी, बही थी वात,
थिरक उठे थे, पात-पात,
मुस्कुरा रही, थी कली,
सज उठी, थी गली,
उन आहटों में, कुछ न कुछ, गौण था!
वो, तुम न थे, तो वो कौन था

सिमट, रही थी दिशा,
मुखर, हो उठी थी निशा,
जग रही थी, कल्पना,
बना एक, अल्पना,
उस अल्पना में, कुछ न कुछ, गौण था!
वो, तुम न थे, तो वो कौन था

वो ख्वाब का, सफर,
उनींदी राहों पे, बे-खबर,
वो जागती, बेचैनियाँ,
शमां, धुआँ-धुआँ,
उस रहस्य में, कुछ न कुछ, गौण था!
वो, तुम न थे, तो वो कौन था

वो, जो गौण था!
जरा, मौन था!
वो, तुम न थे, तो वो, कौन था?

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)