Showing posts with label गलत. Show all posts
Showing posts with label गलत. Show all posts

Sunday 1 May 2016

रहना तो है हमें

है पाप क्या और पुन्य क्या, है बस समझ का फेर ये!

रीति रिवाज हम कहते हैं जिसे,
सीमा इन मर्यादाओं की बंधी है बस उनसे,
पाप-पुन्य तो बस समझ के है फेरे,
रहना तो है हमें, बस इन रीतियों के बंधन के ही तले।

सच है क्या और झूठ क्या, है बस समय का फेर ये!

कभी तो ये मन भटकता दिशाहीन सा,
रीतियों रिवाजों की परवाह तब कौन करता,
सच-झूठ तो बस समय के है फेरे,
रहना तो है हमें, पर मन पर नियंत्रण तब कौन करे।

क्या सही और क्या गलत, है बस समझ का फेर ये!

भटका था मन जिस पल कहाँ थी वो मर्यादा,
मन को नियंत्रित कब कर सका है मन की पिपाशा,
सही-गलत तो बस समझ के है फेरे,
रहना तो है हमें, पर इन विसंगतियों से ही हैं हम बने।