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Sunday, 10 April 2016

रात

डराती रही रात, मगर हम गुनगुनाते रहे रात भर!

वो रात के साए,
खामोश गुजरते रहे,
लगी रही बस एक चुप सी,
सन्नाटे मगर गुनगुनाते रहे रात भर।

डराती रही रात, मगर हम गुनगुनाते रहे रात भर!

वो रात टूटी सी,
रात रोती रही रात भर,
काली कफन में लिपटी सी,
झिंगुर मगर गुनगुनाते रहे रात भर।

डराती रही रात, मगर हम गुनगुनाते रहे रात भर!

वो रात गुमसुम सी,
कुछ कह गई थी कानों में,
सुन न पाए सपन में डूबे हम,
तारे मगर गुनगुनाते रहे रात भर।

डराती रही रात, मगर हम गुनगुनाते रहे रात भर!

वो रात खोई-खोई सी,
जाने किन उलझनों में फसी सी,
बरसती रही ओस बन के गुलाब पर,
कलियाँ मगर गुनगुनाती रही रात भर।

डराती रही रात, मगर हम गुनगुनाते रहे रात भर!

वो रात विरहन सी,
मिल न पाई कभी भोर से,
रही दूर ही उजालों के किरण से,
दीपक मगर गुनगुनाती रही रात भर।

डराती रही रात, मगर हम गुनगुनाते रहे रात भर!