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Monday, 31 May 2021

पथ के आकर्षण

पथ के आकर्षण,
पीछे, पथ में ही रह जाते हैं .....

चलते-चलते, इक संग, इक पथ में,
मन को, ये कर जाते, वश में,
दामन में, ये कब आए,
वो आकर्षण, 
मन-मानस में, बस जाते हैं!

दामन में कब आते हैं!
पथ के आकर्षण,
पीछे, पथ में ही रह जाते हैं .....

जैसे, कोई सम्मोहन, या कोई जादू,
मन को, करता जाए, बेकाबू,
छलक उठे, पैमानों में,
बूँदों के वो घन,
फिर भी, प्यास बढ़ा जाते हैं!

आँगन में कब आते हैं!
पथ के आकर्षण,
पीछे, पथ में ही रह जाते हैं .....

इक दर्द, टीस जरा, मुझे है हासिल,
पीड़ वही, करती है, बोझिल,
यूँ, पथ में ही छूटे हम,
उन यादों में डूबे,
मुझसे दूर, मुझे ही ले जाते है!

पहलू में कब आते हैं!
पथ के आकर्षण,
पीछे, पथ में ही रह जाते हैं .....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Wednesday, 27 July 2016

जरा सुनो ये धड़कनें

जरा सुनो तो, धड़कन बहके से हैं कुछ कल से....

कहती हैं क्या ये पागल सी धड़कनें,
इसकी टूटी तारों को फिर छेड़ा है किसने,
काबू में क्युँ अब ना ये धड़कने,
धक-धक धड़के हैं ये क्युँ फिर कल से,
तकती हैं अब ये नजरें किस अजनबी की राहें......

जरा सुनो तो, धड़कन बहके से हैं कुछ कल से....

धुन नई नवेली कब से सीखा है इसने,
किस धुन पर ये गाता कुछ तराने अनसुने,
जादू हैं कैसे इन अलबेले बोलों में,
डूबा-डूबा सा है यह किन ख्यालों में कल से,
गूँजी है अब गीत धड़कन के ये किन सदाओं में....

जरा सुनो तो, धड़कन बहके से हैं कुछ कल से....

अंजानी राहों में ये फिर लगा बहकने,
बहके-बहके से हैं अब हालात इस दिल के,
सुनता कब मेरी ये रोकुँ मै इसे कैसे,
कुछ भी न था पहले, ये हालात हैं बस कल से,
बहकी है क्युँ अब ये, बेकाबु है अब क्युँ ये धड़कने.....

जरा सुनो तो, धड़कन बहके से हैं कुछ कल से....