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Thursday 3 January 2019

पाथेय

स्मरण हूँ, पाथेय बन, पथ में चलूंगा...

सौरभ हूँ, समीर संग, साँसों में बहूंगा,
अनुभूति हूँ, जंजीर संग, मन बांध लूंगा,
रक्त हूँ, रुधिर संग, शिराओं में बहूंगा,
वक्त हूँ, संग-संग कहीं, बीतता मिलूंगा,
याद हूँ, एकांत में, अधीर हो उठुंगा!

स्मरण हूँ, पाथेय बन, पथ में चलूंगा...

शीतल समीर, जब छू जाएगी बदन,
कानों में, कुछ बात कह जाएगी पवन,
सुरीला गीत , गुन-गुनाएगी चमन,
होगा अधीर, मन का हिरण,
कोई आलाप बन, होंठों पे सजूंगा!

स्मरण हूँ, पाथेय बन, पथ में चलूंगा...

उम्र की प्रवाह में, सूनी सी राह में,
ढ़लती सी हर सांझ में, ढूंढ लेना मुझे
एकाकीपन के, विपिन प्रांतर में,
अकेली राह में, संग चलता रहूूंगा,
फूल हूँ, रंग सा, खिलता मिलूंगा!

स्मरण हूँ, पाथेय बन, पथ में चलूंगा...