Tuesday, 10 March 2020

घुले गुलाल

हर सवाल, यूँ ही बन उड़े गुलाल!

अंग-अंग, घुल चुके अनेक रंग,
लग रहे हैं, एक से,
क्या पीत रंग, क्या लाल रंग?
गौर वर्ण या श्याम वर्ण!
रंग चुके एक से,
हुए हैं आज हल, कई सवाल!

हर सवाल, यूँ ही बन उड़े गुलाल!

प्रश्नों की झड़ी, यूँ ही थी लगी,
भिन्न से, सवाल थे!
बड़े ही अजीब से, जवाब थे!
वो अजनबी से जवाब,
एक स्वर में ढ़ले,
धुल चुके हैं आज, हर मलाल!

हर सवाल, यूँ ही बन उड़े गुलाल!

अभिन्न से बने, वो विभिन्न रंग,
ढ़ंके रहे, गुलाल से,
सर्वथा भिन्न-भिन्न, से ये रंग!
बड़े अजीज, हैं ये रंग,
हरेक प्रश्न से परे,
खुद गुलाल, कर रहे सवाल!

हर सवाल, यूँ ही बन उड़े गुलाल!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

होली 2020
सामाजिक समरसता की कामनाओं सहित बधाई

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 11 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत सुंदर रंग उकेरती रचना ।
    अभिनव सृजन।

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    1. उत्साहवर्धन हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया कुसुम जी।

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (13-03-2020) को भाईचारा (चर्चा अंक - 3639) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    *****
    आँचल पाण्डेय

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  4. बहुत सुंदर सृजन , सादर नमन

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