Showing posts with label मांसाहारी. Show all posts
Showing posts with label मांसाहारी. Show all posts

Saturday 26 December 2015

शाकाहारी मांसाहारी

एक शाकाहारी नें गर्व से कहा, 
साग सब्जी भून रहा हूँ मैं खाने को,
जीवन नहीं लेता मैं किसी कि
अपनी क्षुधा, भूख, तृष्णा मिटाने को।

मैने कहा यह तो है सापेक्षिक समझ,
कण-कण में रजते बसते हैं प्राण,
कोशिकाओं ऊतकों से बनते ये भी,
तुम भी लेते हो प्राण उस कण की।

उन कोशिकाओं मे भी होती है जान,
श्वाँस लेते ये भी इन्हे भी होती है पीड़ा,
दर्द हो सके तो तू इसकी भी पहचान,
स्वार्थ में रजकर क्यों रचता है तू भी स्वांग।

कण कण मे बसे हैं सूक्ष्म प्राण
प्रसव पीड़ा तू इनकी भी पहचान।
हो चुका था वो बिल्कुल निरुत्तर ,
विवश हो उठे थे उसके प्राण ।

शाकाहारी मांसाहारी तो है विभिन्र रुचि बस,
नही झलकते इनसे अलग विचार,
भाव अगर हो सूक्ष्म जीवन की रक्षा,
करो तुम कर्म महान हो जग का कल्याण ।