सच कहूं तो, आसान नहीं सच कह पाना,
और कठिन बड़ा, सच सुन पाना!
सच का दामन, ज्यूं कांटों का आंगन,
चुभ जाते हैं, ये अक्सर,
कठिन बड़ा, ये पीड़ सह पाना!
इक शख्स, अलग ही होगा दर्पण में,
सम्मुख, अक्श भिन्न सा,
शायद, कर न पाओगे सामना!
जाओगे किधर, सच से मुंह फेरकर,
धिक्कारेगा, जमीर कल,
मुश्किल, तब खुद को थामना!
ह्रदय की मन्द गति में, एक नदी है,
पल नहीं, ये एक सदी है,
प्रबल बड़ा, यह सत्य जानना!
सच कहूं तो, आसान नहीं सच कह पाना,
और कठिन बड़ा, सच सुन पाना!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (13-1-22) को "आह्वान.. युवा"(चर्चा अंक-4308)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
आभार आदरणीया....
Deleteबहुत बढिया आदरणीय कविवर | सच को दुनिया से छिपाया जा सकता है पर अपने आप से नहीं | जो इंसान अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुन लेता है वह आत्म ग्लानी से निसंदेह बच जाता है |हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं एक भावपूर्ण रचना के लिए |
ReplyDeleteएक प्रेरक और बहुमूल्य टिप्पणी हेतु ह्रदयतल से आभार आदरणीया।।।।
Deleteबहुत सही कहा है, सत्य से सामना करना आग से गुजरना है
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
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ReplyDeleteसच का दामन, ज्यूं कांटों का आंगन,
चुभ जाते हैं, ये अक्सर,
कठिन बड़ा, ये पीड़ सह पाना!
इक शख्स, अलग ही होगा दर्पण में,
सम्मुख, अक्श भिन्न सा,
शायद, कर न पाओगे सामना!.. जीवन के गहन संदर्भ को परिभाषित करती सुंदर रचना । बहुत बहुत शुभकामनाएं आदरणीय 💐🙏
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteसही कहा आपने आदरणीय सच को कहने से ज्यादा सच को सुनना ही कठिन होता है। शाश्वत सत्य का उद्घाटन करती बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteसच कहना-सुनना आसान हो या न हो सच का साथ सुकूनभरा अवश्य होता है।
ReplyDeleteसुंदर रचना।
प्रणाम
सादर।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया श्वेता जी .....
Deleteसच के आगे नतमस्तक हो जाता हैं झूठ
ReplyDeleteसुंदर रचना बधाई हो आदरणीय
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
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