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Saturday, 10 February 2024

सरसों

सुस्मित सरसों, मधुमित-मुखरित सरसों!

मोहक लागे, मोहे वो बंधन, वो धागे,
पीत, आंचल संग,
बांध गई, बरसों पहले, 
जो सरसों!

सुस्मित सरसों, मधुमित-मुखरित सरसों!

धुंधलाती कोहरों में, कभी छुप जाए,
शर्माए, दुल्हन सी,
अनुरक्ति और बढ़ाए,
ये, सरसों!

सुस्मित सरसों, मधुमित-मुखरित सरसों!

यूं भटकाए राह, यूं पथिक उलझाए,
खैंच लाए, बर्बस,
हिय, हर्षित कर जाए,
वो सरसों!

सुस्मित सरसों, मधुमित-मुखरित सरसों!

हर्षाए धरा, झूम हरितिमा इठलाए,
झूमे, बिखरी घटा,
बिखेरे, स्वर्णिम छटा,
यूं, सरसों!

सुस्मित सरसों, मधुमित-मुखरित सरसों!

अरसों, दामन फैलाए देती निमंत्रण,
सिक्त, आंचल संग,
भीगो गई, बरसों पहले, 
वो सरसों!

सुस्मित सरसों, मधुमित-मुखरित सरसों!

Sunday, 9 December 2018

मोहक दर्पण

छवि अपनी, मैं तकता हूँ जिसमें हरदम,
मोहक है मुझको, वो ही दर्पण....

प्रतिकृति दिखलाता है वो मेरी,
बेशक कुछ कमियाँ गिनवाता है वो मेरी,
दिखलाता है, वो व्यक्तित्व मेरा,
बतलाता है, ये दामन दागी है या कोरा,
मोह लिया है, यूँ जिसने मन मेरा,
मोहक है वो ही दर्पण.....

छवि अपनी, मैं तकता हूँ जिसमें हरदम...

पुण्य-पाप के, हम सब हैं वाहक,
निष्पापी होने का भ्रम, पालते हैं नाहक,
मन के ये भ्रम, तोड़ता है बिंब,
नजरें फेर जब, बोलता है प्रतिबिम्ब,
दिखलाता है, इक नया रूप मेेेेरा,
मोहक है वो ही दर्पण.....

छवि अपनी, मैं तकता हूँ जिसमें हरदम...

अपना अक्श, ढूंढने को अक्सर,
अपना परिचय खुद से, पाने को अक्सर,
जाता हूँ मैं, सम्मुख दर्पण के,
उभर आता है, समक्ष मेरे मेरा ही सच,
दिखलाता है, कैसा है मन मेरा,
मोहक है वो ही दर्पण.....

छवि अपनी, मैं तकता हूँ जिसमें हरदम,
मोहक है मुझको, वो ही दर्पण....

Wednesday, 27 April 2016

वो बेपरवाह

वो बेपरवाह,
सासों की लय जुड़ी है जिन संग,
गुजरती है उनकी यादें,
हर पल आती जाती इन सासों के संग।

वो बेपरवाह,
बस छूकर निकल जाते है वो,
हृदय की बेजार तारों को,
समझा है कब उसने हृदय की धड़कनो को।

वो बेपरवाह,
अपनी ही धुन मे रहता है बस वो,
परवाह नही तनिक भर उसको,
पर कहते है वो प्यार तुम्ही से है मुझको।

वो बेपरवाह,
हृदय की जर्जर तारो से खेले वो,
मन की अनसूनी कर दे वो,
भावनाओं के कोमल धागों को छेड़े वो।

वो बेपरवाह,
टूट टूट कर बिखरा है अब ये मन,
बेपरवाह वो कहता है धड़कन,
बंजारा सा फिरता अब व्याकुल बेचारा मन।

वो बेपरवाह,
झाक लेती गर हृदय के प्रस्तर में वो,
सुन लेती गर सासों की लय वो,
जीवन के लम्हों से लापरवाह ना होते वो।

वो बेपरवाह,
ललाट पर बिंदियों की चमकती कतारें होती,
सिन्दुरी मांग अबरख सी निखर उठती,
सुन्दर सी मोहक तस्वीर इस धड़कन में भी बसती।