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Saturday 11 November 2017

750वीं रचना

स्व-अनुभवों की विवेचना है मेरी 750वीं रचना,
रचनाओं की भीड़ में लिख रहा हूँ एक और रचना....

नाम मात्र की नहीं ये रचना,
पंख ले उड़ान भर रही हो जैसे कोई संकल्पना,
पीड़ संग जन्म रही जैसे कोई कल्पना,
स्व-अनुभवों की हो रही जैसे आत्म-विवेचना......

रचनाओं की भीड़ में है लिख रहा मैं 750वीं रचना......

ख्यालों की जैसे कोई गहना,
पहनता हूँ हरबार जब भी ख्यालों को हो सँवरना,
सँवरते हैं ख्याल, सँवरती है ये कल्पना,
नव-श्रृंगार कर, जीवंत हो उठती है रचना......

रचनाओं की भीड़ में लिख रहा हूँ एक और रचना......

भावावेग का ज्वार सा उठना,
विरह, प्रेम, गीत, एकाकीपन का शब्दों में ठलना,
भाव के सागर में हो जैसे गोते लगाना,
स्वतः स्फूर्त कविताओं का मूर्त हो उठना......

स्व-अनुभवों की विवेचना है ये मेरी 750वीं रचना.....
रचनाओं की भीड़ में लिखता रहा हूँ एक और रचना...

❤नमन कर रही सबों को मेरी ये 750वीं रचना❤
CELEBRATING 750th STEP
& the Way Forward.......

Thanks Everyone for Constantly Encouraging Me...

Thursday 31 March 2016

क्या लोग कहेंगे

क्या लोग कहेंगे? यही सोचकर चुप रहता हूँ ?

झूठी गिरह मन की बंधन के,
बेवजह संकोच लिए फिरता हूँ मन में,
अनिर्णय की स्थिति है, असमंजस में बैठा हूँ,

क्या लोग कहेंगे? यही सोचकर चुप रहता हूँ ?

घुट चुकी है दम प्रतिभाओं की,
खुद को पूर्णतः कहाँ खोल सका हूँ,
पूर्णविराम लगी है, कपाल बंद किए सोया हूँ,

क्या लोग कहेंगे? यही सोचकर चुप रहता हूँ ?

सपने असंख्य पल रहे इस मन में,
शायद कवि महान बन जाता जीवन में,
शब्द घुमड़ रहे है पर, लेखनी बंद किए बैठा हूँ,

क्या लोग कहेंगे? यही सोचकर चुप रहता हूँ ?

ग्यान का कोष मानस में,
अभिव्यक्ति मूक किए बस सुनता हूँ,
विवेचना की शक्ति है, पर दंभ लिए फिरता हूँ,

क्या लोग कहेंगे? यही सोचकर चुप रहता हूँ ?

चाहत खुशियों की पल के जीवन में,
खुशियों की लम्हों में कुछ कहने से डरता हूँ,
जिन्दा हूँ लेकिन, जीवन की लम्हों को यूँ खोता हूँ,

क्या लोग कहेंगे? यही सोचकर चुप रहता हूँ ?