क्या लोग कहेंगे? यही सोचकर चुप रहता हूँ ?
झूठी गिरह मन की बंधन के,
बेवजह संकोच लिए फिरता हूँ मन में,
अनिर्णय की स्थिति है, असमंजस में बैठा हूँ,
क्या लोग कहेंगे? यही सोचकर चुप रहता हूँ ?
घुट चुकी है दम प्रतिभाओं की,
खुद को पूर्णतः कहाँ खोल सका हूँ,
पूर्णविराम लगी है, कपाल बंद किए सोया हूँ,
क्या लोग कहेंगे? यही सोचकर चुप रहता हूँ ?
सपने असंख्य पल रहे इस मन में,
शायद कवि महान बन जाता जीवन में,
शब्द घुमड़ रहे है पर, लेखनी बंद किए बैठा हूँ,
क्या लोग कहेंगे? यही सोचकर चुप रहता हूँ ?
ग्यान का कोष मानस में,
अभिव्यक्ति मूक किए बस सुनता हूँ,
विवेचना की शक्ति है, पर दंभ लिए फिरता हूँ,
क्या लोग कहेंगे? यही सोचकर चुप रहता हूँ ?
चाहत खुशियों की पल के जीवन में,
खुशियों की लम्हों में कुछ कहने से डरता हूँ,
जिन्दा हूँ लेकिन, जीवन की लम्हों को यूँ खोता हूँ,
क्या लोग कहेंगे? यही सोचकर चुप रहता हूँ ?
झूठी गिरह मन की बंधन के,
बेवजह संकोच लिए फिरता हूँ मन में,
अनिर्णय की स्थिति है, असमंजस में बैठा हूँ,
क्या लोग कहेंगे? यही सोचकर चुप रहता हूँ ?
घुट चुकी है दम प्रतिभाओं की,
खुद को पूर्णतः कहाँ खोल सका हूँ,
पूर्णविराम लगी है, कपाल बंद किए सोया हूँ,
क्या लोग कहेंगे? यही सोचकर चुप रहता हूँ ?
सपने असंख्य पल रहे इस मन में,
शायद कवि महान बन जाता जीवन में,
शब्द घुमड़ रहे है पर, लेखनी बंद किए बैठा हूँ,
क्या लोग कहेंगे? यही सोचकर चुप रहता हूँ ?
ग्यान का कोष मानस में,
अभिव्यक्ति मूक किए बस सुनता हूँ,
विवेचना की शक्ति है, पर दंभ लिए फिरता हूँ,
क्या लोग कहेंगे? यही सोचकर चुप रहता हूँ ?
चाहत खुशियों की पल के जीवन में,
खुशियों की लम्हों में कुछ कहने से डरता हूँ,
जिन्दा हूँ लेकिन, जीवन की लम्हों को यूँ खोता हूँ,
क्या लोग कहेंगे? यही सोचकर चुप रहता हूँ ?
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