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Wednesday 21 April 2021

समर

ये समर है मेरा, लड़ना है मुझको ही!

लहु-लुहान, यह रणभूमि,
पर, यह रण, अभी थमा नहीं,
निःशस्त्र हूँ, भले ही,
पर शस्त्र, हमने अभी, रखा नहीं,
हमने बांधा है सेहरा, ये समर है मेरा,
रक्त की, अंतिम बूँदों तक, 
लड़ना है मुझको ही!

ये समर है मेरा, लड़ना है मुझको ही!

ये पथ, हों जाएँ लथपथ,
होंगे और प्रशस्त, ये कर्म पथ,
लक्ष्य, समक्ष है मेरे,
छोड़ी है, ना ही, हमने राह अभी,
तुरंग मैं, कर्म पथ का, रण है ये मेरा,
साँसों की, अंतिम लय तक,
लड़ना है मुझको ही!

ये समर है मेरा, लड़ना है मुझको ही!

बाधाएं, विशाल राहों में,
पर, क्यूँ हो मलाल चाहों में,
भूलें ना, इक प्रण,
कर शपथ, छोड़ेंगे हम ना रण,
तोड़ेगे हर इक घेरा, समर है ये मेरा,
बाधा की, अंतिम हद तक,
लड़ना है मुझको ही!

ये समर है मेरा, लड़ना है मुझको ही!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Wednesday 23 December 2020

निवृति

निवृति कब पाया किसने!
माया यह जीवन!

गंतव्य कहाँ!
जाने कौन, यहाँ!
अनंत पथ,
अनवरत जीवन रथ,
शतत् कर्मरत्, यह अग्निपथ,
इक शपथ,
इक और शपथ!
निवृत कब!
पलती, साँसों के मध्य,
तृष्णा,
और वितृष्णा,
दोधार बना जीवन!

निवृति कब पाया किसने!
माया यह जीवन!

संसार जहाँ,
सुख-सार, कहाँ!
व्यस्त रहा,
विवश रहा, प्राणी,
बिछड़न-मिलन के मध्य,
बह चला,
आँखों का पानी,
बरसा सावन,
फिर भी क्यूँ तरसा,
मन,
प्यासा घन,
सूख चला जीवन!

निवृति कब पाया किसने!
माया यह जीवन!

रात अकेली,
पलकों बीच, खेली,
कभी सोई,
बदल बदल करवट,
जागे, ऊंघे पलकों के पट,
राहें सूनी,
आंगन सब सूना,
इक आस,
मध्य, सौ-सौ निराश,
क्षण,
क्षत्-विक्षत,
आहत इक जीवन!

निवृति कब पाया किसने!
माया यह जीवन!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)