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Saturday 7 August 2021

वही पुरवाई

भरमाती, संग चली आई, वही पुरवाई!

कितनी ठंढ़ी सी, छुवन,
जागे, लाख चुभन,
वही रातें, वही सपने, फिर लिए आई,
भरमाए पुरवाई!

बांधे, अपनेपन के धागे,
संग, पीछे ही भागे,
वही खुश्बू, वही यादें, लिए चली आई,
भरमाए पुरवाई!

छोड़, सारे लाज शरम,
तोड़, मन के भरम, 
राहें, पीपल सी वो बाहें, भरे अंगड़ाई,
भरमाए पुरवाई!

उड़ा ले जाए, दूर कहाँ,
संग, है कौन यहाँ, 
धूँधला, वो जहाँ, हो जाए न, रुसवाई,
भरमाए पुरवाई!

कर दे, कभी नैन सजल,
यादों के, वो पल,
विह्वल कर जाए, वो धुन, वो शहनाई,
भरमाए पुरवाई!

चुन लाता, बिखरे मोती,
वो आशा-ज्योति,
चंचल, बहकी सी पवन, बड़ी सौदाई,
भरमाए पुरवाई!

भरमाती, संग चली आई, वही पुरवाई!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Tuesday 31 July 2018

तन्हाईयाँ

हँस ले जी भर के,
आज मुझपे ऐ तन्हाईयाँ,
सजेंगी महफिलें,
तब आऊंगा बुलाने मैं तुझे,
जल जाएगा तू भी,
देखकर मेरी कहकशाँ....

चलो ये माना कि,
तन्हा है आज हम यहाँ,
न है वो काफिले,
न ही है सितारों का कारवाँ,
पर ये न समझो,
कि गमगीन हैं हम यहाँ....

गूंज हूं मैं अकेला,
संग गूंजेंगी ये विरानियाँ,
दो पग भी चले,
बन ही जाएंगी पगडंडियाँ,
पथिक भी होंगे,
यूं ही बजेंगी शहनाईयाँ....

झेंप जाओगे फिर,
देख मुझको ऐ तन्हाईयाँ,
आ मिल ले गले,
है बेकार की ये रुशवाईयाँ,
क्यूं शिकवे पले,
क्यूं ये शिकायत साथिया....

Sunday 16 April 2017

गूंजे है क्युँ शहनाई

क्युँ गूँजती है वो शहनाई, अभ्र की इन वादियों में?

अभ्र पर जब भी कहीं, बजती है कोई शहनाई,
सैकड़ों यादों के सैकत, ले आती है मेरी ये तन्हाई,
खनक उठते हैं टूटे से ये, जर्जर तार हृदय के,
चंद बूंदे मोतियों के,आ छलक पड़ते हैं इन नैनों में...

क्युँ गूँजती है वो शहनाई, अभ्र की इन वादियों में?

ऐ अभ्र की वादियाँ, न शहनाईयों से तू यूँ रिझा,
तन्हाईयों में ही कैद रख, यूँ न सोए से अरमाँ जगा,
गा न पाएंगे गीत कोई, टूटी सी वीणा हृदय के,
अश्रु की अविरल धार कोई, बहने लगे ना नैनों से....

क्युँ गूँजती है वो शहनाई, अभ्र की इन वादियों में?

निहारते ये नैन अपलक, न जाने किस दिशा में,
असंख्य सैकत यादों के, अब उड़ रही है हर दिशा में,
खलबली सी है मची, एकांत सी इस निशा में,
अनियंत्रित सा है हृदय, छलके से है नीर फिर नैनों में....

क्युँ गूँजती है वो शहनाई, अभ्र की इन वादियों में?