प्रवाह में जीवन के, क्यूँ मृत्यु की परवाह करूँ!
गहन निराशा के क्षण, मुखरित होते हैं दो प्रश्न,
दो ही विकल्प, समक्ष रखता है जीवन?
मृत्यु स्वीकार करूँ, या जीवन अंगीकार करूँ!
जग से प्रयाण करूँ, या कुछ प्रयास करूँ!
जीवन के हर संदर्भ में, पलता है दो भ्रम!
किस पथ है मंजिल, मुकम्मल कौन सी चाहत?
सारांश है क्या? क्यूँ होता है मन आहत?
क्या रखूँ, क्या छोड़ूँ, क्या भूलूँ, क्या याद करूँ?
धुन जीवन के सुन लूँ, या मृत्यु ही चुन लूँ!
संदर्भ कोई आशा के, निराश पलों से चुन लूँ!
गर्भ में मृत्यु के, क्या चैन पाता है जीवन?
उलझाते हैं प्रश्न, इक क्षण मिलती नहीं राहत!
अटल है मृत्यु, पर शाश्वत सत्य है जीवन भी....
मृत्यु के पल भी, जीती है जीने की चाहत!
क्यूँ ना, जीवन जी लूँ, क्यूँ मृत्यु को याद करूँ!
जीवन के साथ चलूँ, जीने की चाह बुनूँ!
प्रवाह में जीवन के, क्यूँ मृत्यु की परवाह करूँ!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
गहन निराशा के क्षण, मुखरित होते हैं दो प्रश्न,
दो ही विकल्प, समक्ष रखता है जीवन?
मृत्यु स्वीकार करूँ, या जीवन अंगीकार करूँ!
जग से प्रयाण करूँ, या कुछ प्रयास करूँ!
जीवन के हर संदर्भ में, पलता है दो भ्रम!
किस पथ है मंजिल, मुकम्मल कौन सी चाहत?
सारांश है क्या? क्यूँ होता है मन आहत?
क्या रखूँ, क्या छोड़ूँ, क्या भूलूँ, क्या याद करूँ?
धुन जीवन के सुन लूँ, या मृत्यु ही चुन लूँ!
संदर्भ कोई आशा के, निराश पलों से चुन लूँ!
गर्भ में मृत्यु के, क्या चैन पाता है जीवन?
उलझाते हैं प्रश्न, इक क्षण मिलती नहीं राहत!
अटल है मृत्यु, पर शाश्वत सत्य है जीवन भी....
मृत्यु के पल भी, जीती है जीने की चाहत!
क्यूँ ना, जीवन जी लूँ, क्यूँ मृत्यु को याद करूँ!
जीवन के साथ चलूँ, जीने की चाह बुनूँ!
प्रवाह में जीवन के, क्यूँ मृत्यु की परवाह करूँ!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा