ऐ जिन्दगी, परखुँ तुझे या बस निरखूँ मैं तुझे!
सुन लूँ मैं धुन तेरी, या चुन लूँ मैं बस तुझे,
हर पहलू तेरा, लिख लूँ कागजों पे,
रंग हजार, रूप अनेक हैं तेरे,
जी लूँ बस तुझे, या घूँट-घूँट पी लूँ मैं तुझे।
ऐ जिन्दगी, परखुँ तुझे या बस निरखूँ मैं तुझे!
मासूम सा बचपन, आवारा, बेचारा सा,
गलियों में फिर रहा, मारा-मारा सा,
अभाव-ग्रस्त, लाचार, विवश,
बस इक चाह अंतहीन, जी लेने की है उसे।
ऐ जिन्दगी, परखुँ तुझे या बस निरखूँ मैं तुझे!
सुनसान सी हैं गलियाँ, बेजार सा है मन,
ढ़ह रहा रेत सा, पलपल यहाँ जीवन,
दिलों में, मृतप्राय हुए स्पंदन,
ढ़हते से घरौंदे, कैसे सँवार-संभाल लूँ इसे!
ऐ जिन्दगी, परखुँ तुझे या बस निरखूँ मैं तुझे!
जीविका की तलाश, जीवन से है बड़ी,
जीने के लिए, इक जंग सी है छिड़ी,
अपनों से दूर, हुआ है आदमी,
बिसात सी है बिछी, खेलना है बस जिसे!
ऐ जिन्दगी, परखुँ तुझे या बस निरखूँ मैं तुझे!
आ पहलू में डाल लूँ, चल पुकार लूँ तुझे,
आँखों में उतार लूँ, मैं प्यार दूँ तुझे,
माफ हैं तेरी, अनगिनत खताा,
बस ये बता, जी लूँ तुझे या पी लूँ मैं तुझे।
ऐ जिन्दगी, परखुँ तुझे या बस निरखूँ मैं तुझे!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
सुन लूँ मैं धुन तेरी, या चुन लूँ मैं बस तुझे,
हर पहलू तेरा, लिख लूँ कागजों पे,
रंग हजार, रूप अनेक हैं तेरे,
जी लूँ बस तुझे, या घूँट-घूँट पी लूँ मैं तुझे।
ऐ जिन्दगी, परखुँ तुझे या बस निरखूँ मैं तुझे!
मासूम सा बचपन, आवारा, बेचारा सा,
गलियों में फिर रहा, मारा-मारा सा,
अभाव-ग्रस्त, लाचार, विवश,
बस इक चाह अंतहीन, जी लेने की है उसे।
ऐ जिन्दगी, परखुँ तुझे या बस निरखूँ मैं तुझे!
सुनसान सी हैं गलियाँ, बेजार सा है मन,
ढ़ह रहा रेत सा, पलपल यहाँ जीवन,
दिलों में, मृतप्राय हुए स्पंदन,
ढ़हते से घरौंदे, कैसे सँवार-संभाल लूँ इसे!
ऐ जिन्दगी, परखुँ तुझे या बस निरखूँ मैं तुझे!
जीविका की तलाश, जीवन से है बड़ी,
जीने के लिए, इक जंग सी है छिड़ी,
अपनों से दूर, हुआ है आदमी,
बिसात सी है बिछी, खेलना है बस जिसे!
ऐ जिन्दगी, परखुँ तुझे या बस निरखूँ मैं तुझे!
आ पहलू में डाल लूँ, चल पुकार लूँ तुझे,
आँखों में उतार लूँ, मैं प्यार दूँ तुझे,
माफ हैं तेरी, अनगिनत खताा,
बस ये बता, जी लूँ तुझे या पी लूँ मैं तुझे।
ऐ जिन्दगी, परखुँ तुझे या बस निरखूँ मैं तुझे!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा