Tuesday, 27 March 2018

भावना या यातना

तुम बहाओ ना मुझे, फिर उसी भावना में.....

ठहर जाओ, न गीत ऐसे गाओ तुम,
रुक भी जाओ, प्रणय पीर ना सुनाओ तुम,
जी न पाऊँगा मैं, कभी इस यातना में....

न सुन सकूंगा, मैं तुम्हारी ये व्यथा!
फिर से प्रणय के टूटने की व्याकुल कथा,
टूट मैं ही न जाऊँ, कहीं इस यातना में....

यूं इक-इक दल, बिखरते हैं फूल से,
आह तक न भरते है, वो लबों पे भूल से,
यूं ना डुबोओ, तुम मुझे यूं भावना मे....

यूं दर्द के साज, क्यूं बजा रहे हो तुम,
सो चुके हम चैन से, क्यूं जगा रहे हो तुम,
चैन खो न जाए मेरा, इस यातना में.....

हाल पे मेरी, जरा तरस खाओ तुम...
भावना या यातना! ये मुझको बताओ तुम,
गुजरा हूं मैं भी, कभी इस यातना मे.....

बह न जाऊँ मैं, कहीं फिर उसी भावना में......

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