अनवरत, वक्त के प्रतिबद्ध धारे!
विवश हैं, या हैं बेचारे?
किसी वचनवद्धता के मारे!
या अपनी ही प्रतिबद्धता से हारे!
हैं ये कटिबद्ध धारे!
अनवरत, वक्त के प्रतिबद्ध धारे!
आबद्ध, हैं ये किसी से?
या हैं स्वतंत्र, रव के सहारे!
अनन्त भटके, किस को पुकारे!
हैं ये प्रलब्द्ध धारे!
अनवरत, वक्त के प्रतिबद्ध धारे!
पल-भर, को ना ठहरे!
अनन्त राह, निर्बाध गुजरे!
चुप-चुप, गुमसुम से बेसहारे!
है ये विश्रब्ध धारे!
अनवरत, वक्त के प्रतिबद्ध धारे!
अस्तब्ध, गतिमान ये!
विश्रब्ध, भरे विश्वास से!
निश्वांस, राह अनन्त ये चले!
हैं ये अदग्ध धारे!
अनवरत, वक्त के प्रतिबद्ध धारे!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
विवश हैं, या हैं बेचारे?
किसी वचनवद्धता के मारे!
या अपनी ही प्रतिबद्धता से हारे!
हैं ये कटिबद्ध धारे!
अनवरत, वक्त के प्रतिबद्ध धारे!
आबद्ध, हैं ये किसी से?
या हैं स्वतंत्र, रव के सहारे!
अनन्त भटके, किस को पुकारे!
हैं ये प्रलब्द्ध धारे!
अनवरत, वक्त के प्रतिबद्ध धारे!
पल-भर, को ना ठहरे!
अनन्त राह, निर्बाध गुजरे!
चुप-चुप, गुमसुम से बेसहारे!
है ये विश्रब्ध धारे!
अनवरत, वक्त के प्रतिबद्ध धारे!
अस्तब्ध, गतिमान ये!
विश्रब्ध, भरे विश्वास से!
निश्वांस, राह अनन्त ये चले!
हैं ये अदग्ध धारे!
अनवरत, वक्त के प्रतिबद्ध धारे!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
सादर आभार आदरणीय
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय
Deleteहमेशा की तरह बहुत खूब.........
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (06-03-2019) को "आँगन को खुशबू से महकाया है" (चर्चा अंक-3266) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार आदरणीय
Deleteबहुत शानदार कविता। मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteiwillrocknow.com
सादर आभार आदरणीय
Deleteबहुत सुन्दर रचना.
ReplyDeleteशुक्रिया आभार आदरणीया डा. जेनी।
ReplyDeleteवक्त की विवशता भी सृष्टि के नियमों में बंधी है। भावपूर्ण रचना वक्त की प्रतिबद्धता को दर्शाती। आप के चिरपरिचित अंदाज में। शुभकामनाएं।
ReplyDeleteसादर धन्यवाद आदरणीय ।
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