छूट चला, तन से, तन का साया,
उस ओर कहीं, रूठ चला!
रही बैठी, संग-संग ठहरी, भर दोपहरी,
कुछ वो चुप, कुछ हम गुमसुम,
क्षण सारा, बीत चला,
असमंजस में, ये सांझ ढ़ला!
छूट चला, तन से, तन का साया,
उस ओर कहीं, रूठ चला!
रिक्त ढ़ले, इक दुविधा में सारे ही क्षण,
हरजाई सी, अपनी ही परछाईं,
मेरे ही, काम न आई,
एकाकी, ये दिन रात ढ़ला!
छूट चला, तन से, तन का साया,
उस ओर कहीं, रूठ चला!
शब्द-विहीन ये पल, अर्थ-हीन कितने,
वाणी बिन तरसे, शब्द घुमरते,
रह गए होंठ, सिले से,
ये तन, सायों से ऊब चला!
छूट चला, तन से, तन का साया,
उस ओर कहीं, रूठ चला!
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