Wednesday, 30 December 2015

तुम चंद पल जीवन दे जाते हो

तुम चंद पल जीवन दे जाते हो।

आहटों में रचकर,
धड़कनों मे बसकर,
गुंजी सदाओं मे छुपकर,
संगीत सुना जाते हो,

तुम चंद पल जीवन दे जाते हो।

रश्मि किरण मे ढ़लकर,
मंद हवाओं संग चलकर,
मेरी कल्पनाओं मे आकर,
रच बस जाते हो,

तुम चंद पल जीवन दे जाते हो।

नभ में बादल बनकर,
घनघोर घटाओं सी छाकर,
अमृत रस बरसाकर,
मन शीतल कर जाते हो,

तुम चंद पल जीवन दे जाते हो।

अच्छा लगता है

तुम मेरे लिए व्याकुल रहो, 
मैं तुम्हारे लिए रहुँ आकुल...अच्छा लगता है।
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प्यार भरा हृदय तुम्हारा हो,
मै आच्छादित हो जाऊँ उर मे ...अच्छा लगता है।

तुम जीवन मे मेरी उमंग भरो,
मैं दूँ करुणा का आलिंगन......अच्छा लगता है।
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तुम मेरा सारा जीवन ले लो,
मै जीवन कलश तुझको दूँ......अचछा लगता है।
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बस जाओ तुम कविताओं मे..सदाओं जैसी,
मैं हर क्षण बस लिखता जाऊँ......अच्छा लगता है।
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छू जाओ तुम मेरा विह्वल मन,
तुमको प्यार करता रहूँ...,..अच्छा लगता है।

हो जाओ तुम मेरी बाहों मे बूढ़ी,
मैं तुझ संग बूढा हो जाऊ.....अच्छा लगता है।

दोनो साथ जीवन से तर जाएँ,
दोनो फिर नभ में मिल जाएँ.....अच्छा लगता है

Tuesday, 29 December 2015

कह तो तुम सब अनकही

कह दो तुम सब अनकही।

जो तुमने अब तक ना कहा,
जो मैने अब तक ना सुना,
नयनों के सधे वाणो से 
अब तक तुम कहती रही,
जो बातें अब तक मन मे रही,
अपने शब्द प्रखर इन्हे दे दो।

कह दो तुम सब अनकही।

अनकही बातें करती है कलरव,
शिखर निर्झर झरे जल की तरह,
अनकहे जज्बात कौंधती रह रह,
बादलों में छुपे बिजली की तरह,
उमरती घुमरती मन में रही
इन जज्बातों को शब्द मुखर दे दो।

कह दो तुम सब अनकही।

तुझसे मेरा वक्त किसने छीना

तुझसे मेरा वक्त किसने छीना?

एकाकीपन का सघन विराना,
घेरे जीवन को अनन्त सुदूर तक,
सूनेपन के कोलाहल से मन व्यथित अबतक,
हृदयदल को छू गई इक रश्मिकण,
पर किसने इस रश्मिकण को भरमाया ।

तुझसे मेरा वक्त किसने छीना?

हृदय मे बजने लगी थी मृदंग रागिणी,
हवाओं मे घुलने लगी थी खुशबु भीनी,
अन्तर्मन के विरानो में फैली थी चाँदनी,
स्वप्निल फुलझड़ियाँ फूट परे थे उस क्षण,
पर किसने इस क्षण को भरमाया!

तुझसे मेरा वक्त किसने छीना?

एकाकीपन उसने तोड़ा था,
व्यथित मन को दी थी इक आशा,
सपन सुनहला जन्मा था आँखों,
सुख की घड़ियों को मैने पहजाना था,
पर किसने इन घड़ियों को भरमाया ।

तुझसे मेरा वक्त किसने छीना?

रहने दो तुम मत दो आस

रहने दो तुम.....!
अब मत करो बात।
भूल जाओ,
अब मत दो आस।
तुम्हारे होंगे असंखय दोस्त,
मिटती होगी जिनसे
तेरी प्यास,
मेरी तो बस एक ही आस,
ला सकता था जो मधुमास,
स्मृति से तेरे हुआ मैं विस्मृत,
बस अब तो,
छोड़ चला हूँ आस।
न मिट सकेगी अब,
इस मन की प्यास।
रहने दो तुम....!
भूल जाओ, मत दो आस,
रहने दो तुम.....!
मत करो बात।
गुजरा हुआ वक्त हूँ मैं,
लौट नही फिर आउँगा,
यादों मे रह जाऊँगा साथ,
रहने दो तुम.....!

दृश्य विहंगम

दृश्य विहंगम समक्ष आँखों के,
आभा प्रकृति की अति निराली,
उपवन ने छेड़े है राग मधुर से,
मचल उठे प्राण तुझ संग अालि।

अरुणिमा यूँ बिखरी नभ पर,
फूलों के चेहरे हो रहे है प्रखर,
राग प्रकृति संग खग के मुखर,
मुरझाए निशि के कर्कश स्वर।

शिखर हिमकण इठलाते झिलमिल,
पात ओस की बूँदों के मुख गए खिल,
कोयल ने छे़ड़ी रागिणी अति कोमल, 
आलि संग हंदय हो गए हैं आकुल।

मेरा एकाकीपन

मैं अकेला,
अग्यात् रश्मिकण,
जीवन की सांध्य वेला।

मेरा एकाकीपन
देकर स्नेह चुंबन,
बांधती जाती मुझे अकेला।

पी गया मैं
गरल जीवन का,
समझ मधुघट अलबेला।