तुझसे मेरा वक्त किसने छीना?
एकाकीपन का सघन विराना,
घेरे जीवन को अनन्त सुदूर तक,
सूनेपन के कोलाहल से मन व्यथित अबतक,
हृदयदल को छू गई इक रश्मिकण,
पर किसने इस रश्मिकण को भरमाया ।
तुझसे मेरा वक्त किसने छीना?
हृदय मे बजने लगी थी मृदंग रागिणी,
हवाओं मे घुलने लगी थी खुशबु भीनी,
अन्तर्मन के विरानो में फैली थी चाँदनी,
स्वप्निल फुलझड़ियाँ फूट परे थे उस क्षण,
पर किसने इस क्षण को भरमाया!
तुझसे मेरा वक्त किसने छीना?
एकाकीपन उसने तोड़ा था,
व्यथित मन को दी थी इक आशा,
सपन सुनहला जन्मा था आँखों,
सुख की घड़ियों को मैने पहजाना था,
पर किसने इन घड़ियों को भरमाया ।
तुझसे मेरा वक्त किसने छीना?
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