बस इक अंतहीन सी तलाश है हर किसी को....
या हो महज ये दो जून की रोटी,
या खुद का खोया वजूद,
या कभी न मिटने वाली मानसिक भूख...
इक अनबुझ सी प्यास,
ये कभी न खत्म होने वाली तलाश,
अध्यात्म से आत्म की ओर,
जीने की जीवट जीजिविषा लिए,
पैरों को जमीन पर घसीटता,
पसीने से लथपथ,
माथे पे शिकन भरी लकीरें,
अजीब सी उदास आँखें लिए,
इधर उधर न जाने क्या तलाशता इंसान...
भूखे प्यासे भटकते लोग,
कुछ मनचाहा सा टटोलते ये लोग,
बेहिसाब अंधाधूंध भागते लोग,
बसें, ट्राम, टैक्सी, मोटरों का शोर,
हर तरफ परेशानियों का कहर,
बातों में घुलते जहर,
ईंट गाड़ा पत्थरों के ये शहर,
भीड़ में खुद को ही सम्भालते हुए,
मंजिलों को तलाशते ये मिट्टी के इंसान....
संबंधों में खूश्बू की आस,
करीबी रिश्तों में भरोसे की तलाश,
घटता अपनत्व, टूटता विश्वास,
सब छोड़कर, सब पाने की होड़,
बारिश में दो बूंद की प्यास,
मिश्री की घटती मिठास,
अंजान राहों पे अंतहीन सफर,
सब कुछ सहेजा फिर भी उलझा सा,
न जाने किन गिरहों को खोलता इन्सान.....
या हो महज ये दो जून की रोटी,
या खुद का खोया वजूद,
या कभी न मिटने वाली मानसिक भूख...
बस इक अंतहीन सी तलाश है हर किसी को....