चलो ना! नींद में चलें, कहीं स्वप्न में मिलें ...
दिन उदास है, अंधेरी सी रात है!
बिन तेरे साथिया, रास आती ना ये रात है!
किससे कहें, कई अनकही सी बात है!
हकीकत से परे, कोई स्वप्न ही बुनें,
अनकही सी वही, बात छेड़ लें....
चलो ना! नींद में चलें, कहीं स्वप्न में मिलें ...
पलकों तले, यूँ जब भी तुम मिले,
दिन हो या रात, गुनगुनाते से वो पल मिले,
शायद, ये महज कल्पना की बात है!
पर हर बार, नव-श्रृंगार में तुम ढ़ले,
कल्पना के उसी, संसार में चलें.....
चलो ना! नींद में चलें, कहीं स्वप्न में मिलें ...
पास होगे तुम, न उदास होंगे हम,
कल्पनाओं में ही सही, मिल तो जाएंगे हम!
तेरे मुक्तपाश में, खिल तो जाएंगे हम!
तम के पाश से, चलो मुक्त हो चलें,
रात ओढ़ लें, उसी राह मे चलें......
चलो ना! नींद में चलें, कहीं स्वप्न में मिलें ...
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
दिन उदास है, अंधेरी सी रात है!
बिन तेरे साथिया, रास आती ना ये रात है!
किससे कहें, कई अनकही सी बात है!
हकीकत से परे, कोई स्वप्न ही बुनें,
अनकही सी वही, बात छेड़ लें....
चलो ना! नींद में चलें, कहीं स्वप्न में मिलें ...
पलकों तले, यूँ जब भी तुम मिले,
दिन हो या रात, गुनगुनाते से वो पल मिले,
शायद, ये महज कल्पना की बात है!
पर हर बार, नव-श्रृंगार में तुम ढ़ले,
कल्पना के उसी, संसार में चलें.....
चलो ना! नींद में चलें, कहीं स्वप्न में मिलें ...
पास होगे तुम, न उदास होंगे हम,
कल्पनाओं में ही सही, मिल तो जाएंगे हम!
तेरे मुक्तपाश में, खिल तो जाएंगे हम!
तम के पाश से, चलो मुक्त हो चलें,
रात ओढ़ लें, उसी राह मे चलें......
चलो ना! नींद में चलें, कहीं स्वप्न में मिलें ...
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा