Thursday 4 February 2016

साथ चलो दोस्तों

मैं शिकवा करूँ भी कैसे मीठी यादों से तेरी,
साथी  मेरी तन्हाई की एक बस याद ही तेरी
गुजरती हैं वक्त खामोशियों मे हिज्र की मेरी,
अंतहीन दर्द देती फिर सदायें यादों की तेरी।

सजदा उन भीनी यादों का जो साथ अब मेरे,
झुक जाती है नजर अब भी बस यादों मे तेरे,
किसी मोड़ पर अगर मिल गए जो तुम कहीं,
खिल उठेंगी तन्हाईयों मे मुझ संग यादें तेरी।

एक तन्हा बस हम ही नहीं जमाने मे दोस्तो,
तन्हाई तो है जिन्दा यहाँ हर दिलों में दोस्तो,
गुजरना हो गर दुनिया से जिन्दगी में दोस्तों,
तन्हाई में किसी के साथ चलते चलो दोस्तों।

दो नैन

चंद अल्फाज निकल गए तारीफ में आपकी,
 मचले हैं शबनमी लहर सुर्ख होठों पे आपकी,
शुरूर बन के छा गई नूर-ए-चांदनी हर तरफ,
बदल गई है रुत की मस्त रवानियाँ हर तरफ।

शर्मों हया का परदा उतरा है चाँदनी की नूर से,
बेखबर मचल रहे यूँ जज्बात दिलों की तीर से,
चाहुँ चुरा लूँ चँद शबनम बंद होठों से आपकी,
देखता रहूँ झुकी पलकों में ढ़ली हया आपकी।

आँखें दे गईं हैं अब पयाम जिन्दगी की नूर के,
कजरारे नैन बरबस तक रहे आस में हुजूर के,
तारीफ करता रहूँ मैं इन दो नैनों की आपकी,
उम्र मै गुजार दूँ तकते इन दो नैनों मे आपकी।

Wednesday 3 February 2016

निज भूल

सन्निकट देख एकाकीपन,
सुनके रात्रितम के कठोर स्वर,
महसूस कुृछ हो रहा मन को।

इक मूरत थी मेरे हाथों मे,
सुन्दर, कोमल और प्रखर,
निःश्वास भरती थी वो रंग कई,
मेरे सूने एकाकीपन में।

कहीं छूटा है हाथों से मेरे,
या खुद ही टूटा उधेरबुन में मेरे,
इक मूरत थी जो मेरे हाथों मे।

मैं अग्यानी समझ न पाया,
कोमलता उसकी परख न पाया,
स्वार्थ मेरा वो रूठा मुझसे।

निज भूल की ही परिणति शायद,
स्नेह अमृत का वो मधुर प्याला,
खुद ही टूटा मेरे हाथों से।

काया प्रेम

क्या तू सिर्फ उस काया से ही प्रेम करता?

बस निज शरीर त्यागा है उसने,
साथ अब भी तेरे मन मे वो, 
प्राणों की सासों की हर लय मे वों, 
यादों की हर उस क्षण में वो।

फिर अश्रु की अनवरत धार क्युँ?

असंख्य क्षण उस काया ने संग बांटे,
पल जितने भी झोली मे थे उसके,
हर पल साथ उसने तेरे काटे,
सांसों की लय तेरी ही दामन में छूटे।

फिर कामना तू अब क्या करता?

क्या तू सिर्फ उस काया से ही प्रेम करता?

जीवन मृत्यु

इक मृत्यु जीवन पर इतना भारी क्युँ?
 साथ छूटा बस इक देह का,
 फिर उस देव का देवत्व विलीन क्युँ?

सजल उस देव के नैन आज क्युँ?
भटक रहा उसका मन क्युँ? 
विकल हुए हैं देव के प्राण क्युँ?
अविरल उन नैनों मे अश्रुधार क्युँ?

निज शरीर ही तो त्यागा है उस आराधिनी ने!
साथ उसके अब भी वो उस मंदिर में,
मन मे वो, यादों की हर क्षण में वो,
प्राण मे वों, अश्रु की अनवरत धार मे वो,
फिर देव उसका उदास क्युँ?

इक मृत्यु जीवन पर इतना भारी क्युँ?
 साथ छूटा बस इक देह का,
 फिर उस देव का देवत्व विलीन क्युँ?

उस देव के मंदिर मे पसरा सन्नाटा क्युँ?
पूजा के फूल मुरझाए क्युँ?
घंटो की टनटन संगीत गुम क्युँ?
दिए की बाती गुमसुम चुप क्युँ?

इक काया ही तो छोड़ा है उस पुजारण नें!
साथ अब भी मंदिर के फूलों मे वो,
दिए की हर जलती लौ मे वो,
घंटों की टनटन कोलाहल मे वो,
फिर उस देव का देवत्व विलीन क्युँ?

इक मृत्यु जीवन पर इतना भारी क्युँ?
साथ छूटा बस इक देह का,
 फिर उस देव का देवत्व विलीन क्युँ?

Tuesday 2 February 2016

अधुरी पूजा उसकी

उजड़ गया संसार उसका,
बिछड़ गया एतबार जीवन का,
छूट गई हाथों से आशा की पतवार,
मन की गहराई के पार दफन हो गया,
वो छोटा सा मोहक संसार।

छोड़ गई दामन वो उसका,
देवतुल्य था जो उसके जीवन में,
टूट चुका है आज वो देव भी,
वर्जनाओं को तोड़ हाथ जिसने थामा था,
शायद वो निष्ठुर स्वार्थी ही थी,
क्षितिज पार जाने की उसको जल्दी थी,
रह गई अब शेष यादें ही।

पर उस दुखिया का भी दोष क्या,
शायद भाग्य उस देवता का ही खोटा था,
दामन उस दुखिया का भी तो लूटा था,
प्राणों से प्यारा उसके पीछे भी तो कोई छूटा था,
आराधना में उस देवतुल्य मानव की,
जीवन अर्पण कर दी थी उसने।

हे ईश्वर, देख पाऊँगा मै कैसे उस देव को,
पूजा ही जिसकी उससे रूठी हो,
लुट चुका संसार खुद उस देवता का,
जिसकी पूजा ही खंडित-खंडित हो।

(दिनांक 01.02.2016 को मेरे प्रिय विनय भैया से ईश्वर ने भाभी को छीन लिया। बचपन से मैने उस खूबसूरत जोड़ी को निहारा है और छाँव महसूस भी की। उनके विछोह से आज मन भर आया है, एक संसार आज आँखों के सामने उजाड़ हुआ बिखरा पड़ा है। हे ईश्ववर, यह लीला क्यों? यह पूजा अधूरी क्यों? यह संगीत अधूरा क्यों?)

अनकहे मौन

अनकहे मौन सुनता यहाँ कौन,
शब्दों की लय कहता नहीं मौन।

मौन सृष्टि का परिचायक,
मौन वाणी वसुधा की,
मौन कंठ वेदना के,
मौन स्वर साधक के,

अनकहे मौन सुनता यहाँ कौन,
शब्दों की लय कहता नहीं मौन।

अनसुने स्वर मौन की,
घुट रहे अब अंदर ही अंदर,
बिखर गए स्वर लहरी ये,
सृष्टि की मन के अंदर।

अनकहे मौन सुनता यहाँ कौन,
शब्दों की लय कहता नहीं मौन।

नैन मौन बहते आँसू बन,
हृदय पीड़ सहता मौन बन,
मौन खड़ी पर्वत पीड़ बन,
मौन रमता बालक के मन।

अनकहे मौन सुनता यहाँ कौन,
शब्दों की लय कहता नहीं मौन।

ग्यान साधक के अन्दर मौन,
अग्यानी दूर सोचता मौन,
उत्कंठा, जिग्यासा मौन,
घट घट में व्याप्त मौन,

अनकहे मौन सुनता यहाँ कौन,
शब्दों की लय कहता नहीं मौन।

मौन ईश्वर के स्वर,
मौन प्राणों के प्रस्वर,
मौन मृत्यु के आस्वर,
मौन दृष्टि उस महाकाल की।

अनकहे मौन सुनता यहाँ कौन,
शब्दों की लय कहता नहीं मौन।