Monday, 8 April 2019

कहीं हम न हैं

तुम हो, मैं हूँ, सब हैं, पर कहीं न हम हैं!

बस भीड़ है, शून्य को चीड़ता इक शोर है,
अंतहीन सा, ये कोई दौर है,
तुम से कहीं, तुम हो गुम,
मुझसे कहीं, मैं हो चुका हूँ गुम,
थके से हैं लम्हे, लम्हों में कहीं न हम हैं!

जिन्दा हैं जरूरतें, कितनी ही हैं शिकायतें,
मिट गई, नाजुक सी हसरतें,
पिस गए, जरूरतों में तुम,
मिट गए, इन शिकायतों में हम,
चल रही जिन्दगी, जिन्दा कहीं न हम हैं!

वश में न, है ये मन, है बेवश बड़ा ही ये मन,
इसी आग में, जल रहा है मन,
तिल-तिल, जले हो तुम,
पलभर न खुलकर जिये हैं हम,
इक आस है, पास-पास कहीं न हम है!

चल रहे हैं रास्ते, अंतहीन रास्तों के मोड़ हैं,
दूर तक कहीं, ओर है न छोड़ है,
गुम हो, इन रास्तों में तुम,
गुम हैं कहीं इन फासलों में हम,
सफर तो है, हमसफर कहीं न हम हैं!

दूर कहीं दूर, खड़ी है जिन्दगी,
तुम हो, मैं हूँ, सब हैं, पर कहीं न हम हैं!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

22 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-04-2019) को "मतदान करो" (चर्चा अंक-3300) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सच कहा अहि ... सब कीच है पर फिर भी हम नहीं हैं ... अपने अपने कमरों में कैद जीवन है ... सत्य से साक्षात्कार करती है रचना .... बहुत लाजवाब ...

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 08/04/2019 की बुलेटिन, " ८ अप्रैल - बहरों को सुनाने के लिये किए गए धमाके का दिन - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. ब्लॉग बुलेटिन की पटल पर स्थान देने हेतु आभारी हूँ आदरणीय शिवम मिश्रा जी।

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  4. वश में न, है ये मन, है बेवश बड़ा ही ये मन,
    इसी आग में, जल रहा है मन,
    तिल-तिल, जले हो तुम,
    पलभर न खुलकर जिये हैं हम,
    इक आस है, पास-पास कहीं न हम है!
    बेहद हृदयस्पर्शी रचना

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  5. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है। https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2019/04/117.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  6. मैं और हम में बड़ा अंतर है ! यही अंतर ज़िंदगी बदल देता है। सब कुछ इसी पर निर्भर है कि आपके पास 'मैं' है या 'हम' है।
    गुम हैं कहीं इन फासलों में हम,
    सफर तो है, हमसफर कहीं न हम हैं!

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    1. आपकी प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ आपका।

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  7. दूर कहीं दूर, खड़ी है जिन्दगी,
    तुम हो, मैं हूँ, सब हैं, पर कहीं न हम हैं!.....वाह!

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    1. आपकी प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ आपका।

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  8. तुम से कहीं, तुम हो गुम,
    मुझसे कहीं, मैं हो चुका हूँ गुम,
    थके से हैं लम्हे, लम्हों में कहीं न हम हैं!
    ये मैं जब तक हम नहीं हो जाता हमसफर साथ होकर भी अकेले ही होते हैं....
    बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति...
    वाह!!!

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    1. आपकी उत्प्रसाहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ आपका।

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    1. आदरणीया अनीता जी, हौसला अफजाई के लिए शुक्रिया आभार ।

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