Saturday, 28 March 2020

कोरोना - ये भी, इक दौर है

ये भी, इक दौर है....
विस्तृत गगन, पर न कहीं ठौर है!
सिमट चुकी है, ये संसृति,
शून्य सी, हुई चेतना,
और एक, गर्जना,
कोरोना!

बेखुदी में, दौर ये....
कोई मरे-मिटे, करे कौन गौर ये!
खुद से ही डरे, लोग हैं,
झांकते हैं, शून्य में,
और एक, वेदना,
कोरोना!

क्रूर सा, ये दौर है....
मानव पर, अत्याईयों का जोर है!
लीलती, ये जिन्दगानियाँ,
रौंदती, अपने निशां,
और एक, गर्जना,
कोरोना!

ढ़लता नहीं, दौर ये....
सहमी क्षितिज, छुप रहा सौर ये!
संक्रमण का, काल यह,
संक्रमित है, ये धरा,
और एक, वेदना,
कोरोना!

ये भी, इक दौर है....
विचलित है मन, ना कहीं ठौर है!
बढ़ने लगे है, उच्छवास,
करोड़ों मन, उदास,
और एक, गर्जना,
कोरोना!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

12 comments:

  1. " बेखुदी में, दौर ये....
    कोई मरे-मिटे, करे कौन गौर ये!
    खुद से ही डरे, लोग हैं,
    झांकते हैं, शून्य में,
    और एक, वेदना,
    कोरोना!"
    वाह! सटीक,सुंदर।

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  2. जय मां हाटेशवरी.......

    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की इस रचना का लिंक भी......
    29/03/2020 रविवार को......
    पांच लिंकों का आनंद ब्लौग पर.....
    शामिल किया गया है.....
    आप भी इस हलचल में. .....
    सादर आमंत्रित है......

    अधिक जानकारी के लिये ब्लौग का लिंक:
    https://www.halchalwith5links.blogspot.com
    धन्यवाद

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  3. सामयिक सार्थक लेखन
    इस रात की भी सुबह होगी ही होगी

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  4. बहुत सुन्दर समसामयिक सृजन
    ढ़लता नहीं, दौर ये....
    सहमी क्षितिज, छुप रहा सौर ये!
    संक्रमण का, काल यह,
    संक्रमित है, ये धरा,
    और एक, वेदना,
    कोरोना!

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    Replies
    1. आदरणीया सुधा देवरानी जी, प्रतिक्रिया हेतु हृदयतल से आभार।
      आशा है कोरोना संक्रमण से आप खुद को और पूरे परिवार को सुरक्षित रख रहीं होंगी।

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