न नज्मों पे, मेरे जाइएगा!
ये बातें हैं, मन की, उलझ जाइएगा!
हो कैद, पल में,
कभी, पल को लिखे!
यूँ, अचानक!
कभी, कुछ लिखे, कभी, कुछ भी लिखे!
विचरता, है स्वच्छंद,
अन्तर्द्वन्द, ना समझ पाइएगा!
न नज्मों पे, मेरे जाइएगा!
पलों के, संकुचन,
यूँ ही, गुजरते हुए क्षण!
रोके, ये मन,
थाम ले ये बाहें, कहे, चल कहीं बैठ संग!
गतिशील, हर क्षण,
इन्हीं द्वन्दों में, घिर जाइएगा!
न नज्मों पे, मेरे जाइएगा!
बहती सी, ये धारा,
न पतवार, है ना किनारा!
रोके, ना रुके,
उफनते ये लहर, जलजलों सा है नजारा!
तैरते, ये सिलसिले,
कहीं खुद को, डुबो जाइएगा!
न नज्मों पे, मेरे जाइएगा!
ये सुनता ही नहीं,
है मेरे, दिल की कभी!
ये, जिद्दी बड़ा,
करता है बक-बक, जी में आए कुछ भी!
पागल सा ये मन,
ये बातें, ना समझ पाइएगा!
न नज्मों पे, मेरे जाइएगा!
ये बातें हैं, मन की, उलझ जाइएगा!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
" बहती सी, ये धारा,
ReplyDeleteन पतवार, है ना किनारा!
रोके, ना रुके,
उफनते ये लहर, जलजलों सा है नजारा!
तैरते, ये सिलसिले,
कहीं खुद को, डुबो जाइएगा!"
वाह आदरणीय सर बेहद उम्दा 👌
सादर प्रणाम 🙏
हार्दिक आभार आदरणीया
DeleteLajawaaab
ReplyDeleteThanks Dear Sudhir....
Deleteवाह बेहद शानदार
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया
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