ओ
बेजार से रंग,
छलक
जाओ!
बड़े
बेरंग हैं,
कई दामन,
बड़े
बदरंग हैं
कई
आँचल,
जाओ,
रंग उनमें,
जरा
भर आओ!
हो
उदासीन बड़े!
क्यूँ हो?
तुम,
दूर खड़े,
तुम तो,
खुद
बिसरे
कि
तुम
हो रंग
बड़े,
कर दो
दंग,
जरा
बिखर जाओ,
हैं,
रंगहीन से,
कई
सपने,
सप्त-रंग सा,
उमर
जाओ!
तुम
जो रूठे
हो तो
रूठी
है
ये दुनियाँ,
सूनी
है
मांग कई,
हुई
फीकी
सी
नई
चूड़ियाँ,
कोई
रंग,
बेरंग न हो,
बरस
जाओ!
ओ
बेजार से रंग,
छलक
जाओ!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
सुप्रभात जी। बहुत सुन्दर रचना।
ReplyDeleteहोलीकोत्सव के साथ
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की भी बधाई हो।
सादर आभार आदरणीय मयंक जी। सप्रेम आपको भी होली व महिला दिवस की हार्दिक बधाई ।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteबेजार से रंग छलक जाओ...वाह।
नई पोस्ट - कविता २
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय रोहितास जी।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (09-03-2020) को महके है मन में फुहार! (चर्चा अंक 3635) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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होलीकोत्सव कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार आदरणीय ।
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