सुलगती रही, इन्हीं आबादियों में,
बहते रहे, तपते रेत के धारे...
सूखी हलक़, रूखी सी सड़क,
चिल-चिलाती धूप, रूखा सा फलक,
सूनी राह, उड़ते धूल के अंगारे,
वीरान, वादियों के किनारे,
दिन कई गुजारे!
सुलगती हुई, इन्हीं आबादियों में!
सूखी पवन, अगन ही अगन,
सूखा हलक़, ना चिड़ियों की चहक,
न छाँव कोई, ना कोई पुकारे,
उदास, पलकों के किनारे,
दिन कई गुजारे!
सुलगती हुई, इन्हीं आबादियों में!
खिले टेसू, लिए इक कसक,
जले थे फूल, या सुलगते थे फलक,
दहकते, आसमां के वो तारे,
विलखते, हृदय के सहारे,
दिन कई गुजारे!
सुलगती हुई, इन्हीं आबादियों में!
बहते रहे, तपते रेत के धारे...
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 01 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभारी हूँ दी।
Deleteसूखी हलक़, रूखी सी सड़क,
ReplyDeleteचिल-चिलाती धूप, रूखा सा फलक,
सूनी राह, उड़ते धूल के अंगारे,
वीरान, वादियों के किनारे,
दिन कई गुजारे!
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर... लाजवाब सृजन।
सुन्दर प्रेरक प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ आदरणीया।
Deleteखिले टेसू, लिए इक कसक,
ReplyDeleteजले थे फूल, या सुलगते थे फलक,
दहकते, आसमां के वो तारे,
विलखते, हृदय के सहारे,
दिन कई गुजारे!
वाह बेहतरीन रचना 👌👌
सुन्दर प्रेरक प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ आदरणीया।
Deleteखिले टेसू, लिए इक कसक,
ReplyDeleteजले थे फूल, या सुलगते थे फलक,
दहकते, आसमां के वो तारे,
विलखते, हृदय के सहारे,
दिन कई गुजारे!
बहुत खूब पुरुषोत्तम जी | विरह से दहकते मन का भापूर्ण गान ! सुन्दर और अलग तरह का सृजन | हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई
सुन्दर प्रेरक प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ आदरणीया।
DeleteEasy "water hack" burns 2 lbs OVERNIGHT
ReplyDeleteAt least 160 thousand men and women are utilizing a simple and secret "liquids hack" to burn 1-2 lbs each and every night as they sleep.
It is effective and works all the time.
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1) Go get a clear glass and fill it half full
2) Now follow this crazy hack
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