यूँ संग तुम्हारे,
देर तक, तकता हूँ, मैं भी तारे,
हो, तुम कहीं,
एकाकी हूँ, मैं कहीं,
हैं जागे,
रातों के, पल ये सारे!
यूँ तुमको पुकारे,
शायद तुम मिलो, नभ के किसी छोर पर,
कहीं, सितारों के कोर पर,
मिलो, उस पल में, किसी मोड़ पर,
एकाकी पल हमारे,
संग तुम्हारे,
व्यतीत हो जाएंगे, सारे!
यूँ बिन तुम्हारे,
शायद, ढूंढ़ते हैं, उस पल में, खुद ही को,
ज्यूँ थाम कर, प्रतिबिम्ब को,
मुखर है, झील में, ठहरा हुआ जल,
हैं चंचल ये किनारे,
और पुकारे,
बहते, पवन के इशारे!
यूँ संग हमारे,
चल रे मन, चल, फिर एकाकी वहीं चल!
अनर्गल, बिखर जाए न पल,
चल, थाम ले, सितारों सा आँचल,
नैनों में, चल उतारे,
वो ही नजारे,
जीत लें, पल जो हारे!
यूँ संग तुम्हारे,
देर तक, तकता हूँ, मैं भी तारे,
हो, तुम कहीं,
एकाकी हूँ, मैं कहीं,
हैं जागे,
रातों के, पल ये सारे!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
देर तक, तकता हूँ, मैं भी तारे,
हो, तुम कहीं,
एकाकी हूँ, मैं कहीं,
हैं जागे,
रातों के, पल ये सारे!
यूँ तुमको पुकारे,
शायद तुम मिलो, नभ के किसी छोर पर,
कहीं, सितारों के कोर पर,
मिलो, उस पल में, किसी मोड़ पर,
एकाकी पल हमारे,
संग तुम्हारे,
व्यतीत हो जाएंगे, सारे!
यूँ बिन तुम्हारे,
शायद, ढूंढ़ते हैं, उस पल में, खुद ही को,
ज्यूँ थाम कर, प्रतिबिम्ब को,
मुखर है, झील में, ठहरा हुआ जल,
हैं चंचल ये किनारे,
और पुकारे,
बहते, पवन के इशारे!
यूँ संग हमारे,
चल रे मन, चल, फिर एकाकी वहीं चल!
अनर्गल, बिखर जाए न पल,
चल, थाम ले, सितारों सा आँचल,
नैनों में, चल उतारे,
वो ही नजारे,
जीत लें, पल जो हारे!
यूँ संग तुम्हारे,
देर तक, तकता हूँ, मैं भी तारे,
हो, तुम कहीं,
एकाकी हूँ, मैं कहीं,
हैं जागे,
रातों के, पल ये सारे!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 12 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय।
Deleteबहुत खूब
ReplyDeleteसादर आभार मयंक जी। शुक्रिया।
Deleteबेहद सुंदर रचना
ReplyDeleteआभारी हूँ आदरणीया भारती जी।
Deleteयूँ संग हमारे,
ReplyDeleteचल रे मन, चल, फिर एकाकी वहीं चल!
अनर्गल, बिखर जाए न पल,
चल, थाम ले, सितारों सा आँचल,
नैनों में, चल उतारे,
वो ही नजारे,
जीत लें, पल जो हारे!
बेहद खूबसूरत,हृदयस्पर्शी रचना पुरुषोत्तम जी,सादर नमन आपको
सतत मनोबल बढाने के लिए आभारी हूँ आदरणीया कामिनी जी।
Deleteअरे वाह ! भावुक हृदय की कोमल अभिव्यक्ति ! बहुत ही सुन्दर रचना !
ReplyDeleteउत्साहवर्धन हेतु आभारी हूँ आदरणीया साधना जी।
Deleteबहुत खूब पुरुषोत्तम जी ! विरह विगलित अंतर्मन की भावपूर्ण भावाभियक्ति | एकाकी मन के संवाद जो बहुत मर्मस्प्रशी हैं | आपकी अपनी शैली की सुंदर रचना | हार्दिक शुभकामनाएं और आभार |
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (14 -7 -2020 ) को "रेत में घरौंदे" (चर्चा अंक 3762) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
सादर आभार आदरणीया
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक अभिनन्दन ओंकार जी।
Deleteयूँ संग तुम्हारे,
ReplyDeleteदेर तक, तकता हूँ, मैं भी तारे,
हो, तुम कहीं,
एकाकी हूँ, मैं कहीं,...मर्मस्पर्शी सृजन आदरणीय सर .
उत्साहवर्धन हेतु आभारी हूँ आदरणीया अनीता जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।
Deleteबेहद हृदयस्पर्शी रचना आदरणीय
ReplyDeleteप्रेरक शब्दों हेतु हृदयतल से आभार आदरणीया अनुराधा जी। नमन।
Deleteबहुत खूब सर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय महोदय। शुक्रिया।
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